शरीर की त्वचा को स्वस्थ कैसे रखे?How to keep Skin Healthy?

How to keep Skin Healthy

How to keep Skin Healthy

शरीर की त्वचा को स्वस्थ कैसे रखे?How to keep Skin Healthy?

 

शरीर की त्वचा को स्वस्थ कैसे रखे?How to keep Skin Healthy?- Dr.Jagdish Joshi, Lifestyle Expert 125

त्वचा शरीर का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण अंग  :

त्वचा शरीर का अत्यधिक महत्वपूर्ण अंग है । यदि हम क्षेत्रफल के हिसाब से देखे तो त्वचा सर्वाधिक बडे क्षेत्र वाला अंग है । एक युवा व्यक्ति की त्वचा का वजन करीब 3.600 किलोग्राम होता है । इसका क्षेत्रफल करीब 22 वर्ग फीट होता है । त्वचा 2-3 मिलीमीटर की मोटाई की भी होती है | हमारी त्वचा पर असंख्य रोम छिद्र होते है । प्रति वर्ग इंच पर करीब 650 स्वेद ग्रंथिया, 20 ब्लड वेसल्स व 60,000 मेलोनोंसाईट्स होते है | सामान्य अवस्था में त्वचा करीब 650 मिलि पसीना शरीर से गंदगी के रुप में निष्कासित करती है ।

त्वचा भी विजातीय द्रव्यों का निष्कासन करती है :   

शरीर से पर्याप्त मात्रा में पसीना निकलना चाहिए | यदि पसीना शरीर से पूर्ण रुप से नही निकलेगा तो शरीर निश्चित ही रोगी हो जायेगा । जिस प्रकार हम आंतों से मल विसर्जन करते है, गुर्दे मूत्र निकालते है, फैफडे कार्बनडाय आक्साईड छोड़ते है वैसे ही त्वचा शरीर से गंदगी के रुप में निरंतर पसीना निकालती है ।

शरीर के समस्त अंगों जैसे ह्रदय, किडनी, आंते, लीवर व अन्य महत्वपूर्ण अंगों को सुरक्षा व सतह त्वचा ही प्रदान करती है । इसके साथ ही शरीर के तापमान को वैज्ञानिक रुप सामान्य बनाये रखने में त्वचा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है । इस प्रकार हम देखते है कि त्वचा शरीर को सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही अनेक महत्वपूर्ण कार्यो को सम्पादित करती है ।

रोग होने का मुख्य कारण पसीना नही निकलना :   

प्राय: कुछ लोगों के शरीर से पसीना ही नही निकलता है, क्योकि उनके रोमछिद्र बन्द रहते है । क्योकि गंदगी, डियो, टेलकम पावडर की वजह से व्यक्ति की त्वचा के अनेक रोम छिद्र बंद रहते है । अत्यधिक आराम दायक जिन्दगी जीने से, ए.सी. में रहने से भी व्यक्ति को पसीना नही निकलता है । जब व्यक्ति के शरीर से निरंतर पसीना नही निकलता है तो व्यक्ति के शरीर में गंदगी निरंतर जमा हो जाती है ।

जब निरंतर शरीर में गंदगी जमा होती जाती है तो वह चर्म रोग, बुखार व अन्य रुप में हमारे शरीर पर प्रगट होती है । कई बार व्यक्ति के पसीने से मूत्र जैसी बदबू आती है इसका कारण किडनी का अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य नही करना है । इसी प्रकार जब त्वचा अपनी पूर्ण क्षमता से शरीर से गंदगी नही निकालती है तो शरीर के दुसरे सफाई अंग किडनी, आंते व फैफडों पर सफाई करने का कार्य बढ जाता है । यदि आप नियमित रुप से प्राकृतिक चिकित्सा का अनमोल प्रयोग घर्षण स्नान करते है तो शरीर की त्वचा सदैव सक्रिय रहती है, जिससे शरीर मे रक्त का सुचारु प्रवाह होता है, क्योकि व्यक्ति की त्वचा पर दो तिहाई रक्त होता है | घर्षण स्नान करने से व्यक्ति हमेंशा उर्जा व शक्ति से भरा हुआ रहता है ।

त्वचा के रोमछिद्र निरन्तर गंदगी को पसीने के माध्यम से शरीर से निष्कासित करते रहते है । यदि त्वचा अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य करती है तो व्यक्ति कभी रोगी होगा ही नही । यदि त्वचा अपनी पूर्ण कार्यक्षमता से कार्य करती है तो व्यक्ति सदैव स्वस्थ्य रहेगा ।

प्राकृतिक चिकित्सा से त्वचा को कैसे कार्यक्षम बनाए?: प्राकृतिक चिकित्सा के प्रयोग वाष्प स्नान, हाट फुट बाथ (गर्म पानी का पैर स्नान), घर्षण स्नान, चादर लपेट, पेडू की लपेट व अन्य प्रयोगों व सकारात्मक आहार से त्वचा को रोग मुक्त व कार्यक्षम बना रोग मुक्त किया जा सकता है |

फैफड़े: शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग
फैफड़े मनुष्य शरीर का अत्यधिक महत्वपूर्ण अंग है | फैफड़े 24 घंटे कार्य करने वाला अंग है | प्राय व्यक्ति अपने फैफडों की पूर्ण क्षमता का उपयोग ही नही करता है | इस वजह से मनुष्य का शरीर जीवन भर विभिन्न रोगों का सामना करता है | यदि हमें फैफड़ों की कार्य प्रणाली के बारे में जानकारी हो तो कोई कारण ही नही की हम उसे कार्यक्षम बनाकर स्वस्थ्य जीवन का आनंद ले सके |

हम श्वास के बिना एक मिनिट भी नही रह सकते है | प्राय: हम अपने फैफड़े की एक तिहाई क्षमता का ही उपयोग करते है | फैफड़े की पूर्ण कार्यक्षमता के उपयोग नही करने की वजह से शरीर के विभिन्न अंग रोगों से ग्रसित हो जाते है | इसके साथ ही वातावरण के दूषित होने व मानसिक रूप से प्रभावित होने पर फैफडों के स्वास्थ्य पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है |

हमारे शरीर में दो फैफड़े पाये जाते है | फैफड़े शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंग की श्रेणी में आते है | प्रत्येक जिवित प्राणी को जीने के लिये आक्सीजन की आवश्यकता होती है । आक्सीजन के बिना जीवन संभव नही है। शरीर की समस्त कोशिकाओं में सभी तत्वों का चयापचय और उसके प्राप्त उर्जा व उष्मा का सृजन आक्सीजन के माध्यम से ही संभव हो पाता है । वास्तव में आक्सीजन ही जीवन है, आक्सीजन के अभाव में ऊतक कुछ ही मिनिटों में निष्क्रिय हो जाते है । इस बात से सिध्द हो जाता है कि आक्सीजन ही वह तत्व है जिससे जीवन चलता है ।

फैफडों का मुख्य कार्य शरीर को भरपूर आक्सीजन का प्रदाय करना है | फैफड़े शरीर से कार्बन डाय आक्साईड व अन्य गैसों को शरीर से बाहर निकालते है | ऊतकों में कार्बन एव हाईड्रोजन से मिलकर आक्सीजन प्रत्येक कोशिका की चया पचय क्रिया में मदद करते है । इसी क्रिया के फलस्वरुप शरीर से कार्बन डायआक्साईड व पानी शरीर से बाहर निकलते है । इस प्रकार हम देखते है कि श्वसन क्रिया के दो मुख्य कार्य है:

1. वातावरण से शरीर को आक्सीजन की आपूर्ति करना ।
2. ऊतकों से कार्बन डाय आक्साईड को वातावरण में छोडना ।

उक्त दोनों क्रिया में गैसों का आदान प्रदान होता है, साथ ही शरीर के कुछ जलीय अंश का उत्सर्जन भी इस क्रिया के माध्यम से होता है ।

फैफडे की संचरना :                                                                                                                                                                                                                  प्रत्येक मनुष्य में 2 फेफड़े होते है | दाया फैफडे में 3 लोबस होते है व बाए फैफडे में कुछ छोटे 2 लोबस होते है | बाया फैफडा कुछ छोटा होता है क्योकि बायी और ह्रदय स्थापित होता है | फैफडों में कुल 2400 किलोमीटर लंबाई के बराबर वायु मार्ग होता है और करीब 300-500 मिलियन एलोवी होते है | दोनों फैफडों का क्षेत्रफल करीब 70-10 वर्ग मीटर होता है, जो की एक टेनिस कोर्ट के बराबर होता है |

तेज गति से दौडने से, प्राणिक क्रियाओं के अभ्यास से, प्राणायाम से, कठिन शारीरिक श्रम करने से फैफडें पर्याप्त क्षमता से कार्य करते है, किंतु आम आदमी की जिन्दगी बंद कमरों व दूषित वातावरण में निकल जाती है । इसके साथ ही व्यक्ति जहाँ निवास करता है वह स्थान भी प्राय: बंद रहता है, शायद ही वहाँ आक्सीजन प्रवेश कर पाती है ।

श्वास की प्राणिक क्रियाओ व प्राणायाम के माध्यम से फैफडों की कार्यक्षमता में अपार वृध्दि होती है | श्वास की क्रियाओ के लिए लेखक की पुस्तक 125 वर्ष स्वस्थ्य व निरोगी रहेने का रहस्य के पृष्ठ क्र॰172 पर लेख प्राण-क्रियाये- फेफडो की कार्यक्षमता बढ़ाए पढे |

प्राकृतिक चिकित्सा से फैफडों को कैसे कार्यक्षम बनाए?: प्राकृतिक चिकित्सा के प्रयोग वाष्प स्नान, हाट फुट बाथ (गर्म पानी का पैर स्नान), पैरों की लपेट व अन्य प्रयोगों व सकारात्मक आहार से फैफडों को रोग मुक्त व कार्यक्षम बनाया जा सकता है |

गुर्दे: शरीर की निरंतर सफाई करने वाला अंग
मूत्र संस्थान अर्थात गुर्दा शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण व 24 घंन्टे बिना रुके कार्य करने वाला अंग है । हमारे व्दारा दैनिक जीवन में आहार में की गई गलती की सजा गुर्दो को मिलती है | कई बार देखा गया है की कुछ लोग पानी की अत्यधिक कम मात्रा का सेवन करते है | इस वजह से कई रोगियों के गुर्दे सिकुड़ जाते है | इसके साथ ही रक्त चाप व मधुमेह के रोगियों के गुर्दे भी खतरे की सीमा में रहते है | उच्च रक्त चाप व मधुमेह के लंबे समय शिकार रहने की वजह से गुर्दो के स्वास्थ्य पर संकट आ जाता है | उच्च रक्तचाप व मधुमेह रोग होने पर नियमित सेवन की जाने वाली ओषधि के साथ-साथ रक्तचाप व रक्त शर्करा को भी नियंत्रित करने के लिए योग, प्राणायाम, ध्यान, प्राकृतिक चिकित्सा व आहार में परिवर्तन करना चाहिए ताकि गुर्दे हमेशा स्वस्थ्य बने रहे |

गुर्दो की संचरना :                                                                                                                                                                                                                          गुर्दो का आकार बालोर के बीज के समान होता है । इसका वजन करीब 150 ग्राम होता है । दोनों गुर्दो में करीब 24 लाख सुक्ष्म छलनियाँ होती है जो रक्त को निरंतर छानने का कार्य करती है । रक्त में मौजुद हानिकारक पदार्थो को विष मुक्त करने का कार्य गुर्दे निरंतर करते रहते है । गुर्दें 1 घंटे में 2 बार रक्त को स्वच्छ करते है । इस क्रिया के प्रत्येक घंटे के बाद करीब 1500-1700 मिलि विजातीय द्रव्य मूत्र के रुप में शरीर से निष्कासित होता है । जब भी मूत्राशय में मूत्र की मात्रा करीब-करीब 200-500 मिलि हो जाती है तब व्यक्ति मूत्र विसर्जन के लिये प्रेरित होता है ।

जिस प्रकार हम शरीर के वाह्य अंगों की स्नान करके सफाई करते है, उसी प्रकार शरीर के आंतरिक अंगों की सफाई गुर्दे करते है | गुर्दे शरीर में एकत्रित कचरा व जहरीला पदार्थ शरीर से मूत्र के माध्यम से नियमित रूप से निष्कासित कर शरीर को स्वस्थ्य बनाता है |

मनुष्य शरीर में दो गुर्दे होते है | किन्तु एक गुर्दे भी हमारे शरीर को स्वच्छता प्रदान करने में सक्षम होता है | किन्तु परमात्मा ने हमें दो गुर्दे दिये है | किन्तु वर्तमान में उच्च रक्तचाप व मधुमेंह की वजह से गुर्दे की सुरक्षा खतरे में आ गई है | किन्तु यदि हम इस अंग की सुरक्षा कर सके तो हम सम्पूर्ण जीवन में इसे स्वस्थ्य व निरोगी रखे पाएगे व स्वस्थ्य जीवन का आनंद ले सकेगे | गुर्दे मानव शरीर का अत्यधिक महत्वपूर्ण अंग है | गुर्दे की बीमारी किसी गंभीर रोग या मौत का कारण बन सकती है | गुर्दे की तुलना हम किसी सुपर कम्पुटर से कर सकते है | क्योकि इसकी रचना बहुत ही जटिल है | शरीर से हानिकारक व अपशिष्ट पदार्थो को शरीर के बाहर करना | गुर्दे 24 घंटे अपना कार्य कर शरीर की सफाई निरंतर करते रहते है |

इसके साथ ही गुर्दे शरीर में पानी, तरल पदार्थो, खनिज लवण के संतुलन को बनाए रखते है |

गुर्दे शरीर के रक्त को निरंतर साफ करते है और मूत्र का उत्पादन करते है | शरीर से पेशाब निकालने का कार्य मूत्र वाहिनी, मूत्राशय व मूत्र नलिका के माध्यम से होता है | गुर्दे कई प्रकार के हार्मोन्स बनाते है, इन हार्मोन्स की वजह से शरीर में पानी, अम्लों एव क्षारों के मध्य संतुलन बना रहता है | इस संतुलन की वजह से शरीर में रक्त का दबाब सामान्य बना रहता है | किडनी के अस्वस्थ होने की वजह से नमक, पानी के संतुलन में गड़बड़ी आने से उच्च रक्तचाप हो जाता है |
प्राकृतिक चिकित्सा से गुर्दों को कैसे कार्यक्षम बनाए?: प्राकृतिक चिकित्सा के प्रयोग वाष्प स्नान, हाट फुट बाथ(गर्म पानी का पैर स्नान), टी लपेट, पेडू की लपेट व अन्य प्रयोगों व सकारात्मक आहार से गुर्दो को रोग मुक्त व कार्यक्षम बनाया जा सकता है |

प्रकृति स्वंयम एक चिकित्सक है :
प्राय: व्यक्ति बीमार होने पर एक चिकित्सा पध्दति से दुसरी चिकित्सा पध्दति की और जाकर स्वस्थ्य होने का निरंतर असफल प्रयास करता है, किंतु व्यक्ति अपनी जीवन चर्या में सुधार नही करता है । वास्तव में प्रकृति स्वंय एक चिकित्सक है, जब किसी व्यक्ति की हड्डी टूट जाती है तो हड्डी कैसी जुडती है? हड्डी को प्रकृति जोडती है । जब किसी व्यक्ति के शरीर पर घाव हो जाता है तो कौन उस घाव को स्वस्थ्य करता है? उक्त समस्त कार्य प्रकृति अर्थात हमारे शरीर की जीवनी शक्ति करती है । शरीर की जीवन शक्ति जितनी मजबूत होगी उतना ही हमारा स्वास्थ्य मजबूत होगा |

हम इस बात को फल के बीज के माध्यम से समझ सकते है, जब कोई बीज जमीन में डाला जाता है तो उस बीज को अंकुरित कौन करता है? उस बीज को पोधा कौन बनाता है?, उस बीज को वृक्ष कौन बनाता है? उस वृक्ष पर फल कौन उगाता है? उक्त समस्त कार्य प्रकृति के व्दारा सम्पन्न होते है । इसी प्रकार शरीर के समस्त अंगों को स्वस्थ्य करने का कार्य हमारी जीवनी शक्ति विभिन्न स्वरुप में करती है ।

प्राकृतिक चिकित्सा में जल, मिट्टी, आकाश, अग्नि व वायु शरीर की सफाई करने के साथ शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का कार्य करते है । उक्त तत्व अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व है । ये तत्व शरीर की आंतरिक वह वाह्य अंगों की सफाई कर शरीर को स्वस्थ्य बनाते है ।

त्वचा:                                                                                                                                                                                                                                       हमारी त्वचा पर सदैव अनेक जीवाणुओं का कब्जा रहता है । उक्त जीवाणु कुछ समय तक ही जीवित रहते है । क्योकि त्वचा पर पसीने के माध्यम से अनेक रासायनिक घटक इन जीवाणुओं को सतत नष्ट करते रहते है । इसलिए उचित मात्रा में पसीना आना आवश्यक है |

नाक-मुँह व गला:                                                                                                                                                                                                                       हमारी नाक, मुँह व गले में अवस्थित लसलसा पदार्थ निकलता रहता है जो अनेक जीवाणुओं को पकड कर मुँह व नाक के माध्यम से शरीर के बाहर कर देता है । इसी वजह से श्वसन के दौरान बहुत ही कम कीटाणु फैफडें में प्रवेश कर पाते है ।

आँख:                                                                                                                                                                                                                                        आँख में नियमित रुप से जलीय पदार्थ रहता है, जो आंखों की सतत सुरक्षा करता रहता है । प्राय: हमारी आँखे इन्ही जलीय पदार्थों की वजह से सुरक्षित रहती है । जब हमारी आँख में जलीय पदार्थ की कमी हो जाती है तो हमारी आँखों में जलन का अहसास होता है जो इस बात का परिचायक है कि आँखों में पानी की कमी हो गई है ।

आंते:                                                                                                                                                                                                                                             हमारी आंतों में अत्यधिक शक्तिशाली जीवाणुओं की सेना होती है जो पाचन प्रणाली को नुकसान पहुँचाने वाले कीटाणुओं को आंतों में प्रवेश नही करने देती है । विभिन्न शोधों के व्दारा सिद्ध हुआ है कि हैजा, टायफाईड और विभिन्न प्रकार के जीवाणु लम्बें समय तक स्वस्थ्य पाचन प्रणाली में नही जीवित रह सकते है, इन्हे नष्ट करने का कार्य आंतों में अवस्थित मित्र कीटाणुओं की सेना करती है ।

रक्त:                                                                                                                                                                                                                                         मनुष्य व्दारा आहार व श्वास के माध्यम से अनेक कीटाणुओं का शरीर में निरन्तर प्रवेश होता रहता है । हमारे शरीर में रक्त एक सेना के रुप में शरीर को सुरक्षा प्रदान करता है । जब भी शरीर में कीटाणुओं का हमला होता है तो रक्त में अवस्थित श्वेत रक्त कणिकाएँ उन कीटाणुओं पर आक्रमण कर उन्हे नष्ट कर देती है ।

यकृत(यकृत):                                                                                                                                                                                                                            यकृत को स्वास्थ्य सुरक्षा अधिकारी कहा जाता है । जिस प्रकार चोकीदार घर की सुरक्षा का ध्यान रखता है, उसी प्रकार यकृत हमारे शरीर की सतत सुरक्षा का ध्यान रखता है । जब आहार के माध्यम से ग्रहण किये गये भोजन में यदि कोई दूषित पदार्थ या जहरीला पदार्थ मिल जाता है तो यकृत उसे तुरंत निष्क्रिय कर देता है । शरीर के रक्त की विष मुक्ति का कार्य भी यकृत के व्दारा नियमित रूप से किया जाता है ।

इसी प्रकार गुर्दे, फैफडे व अन्य शरीर के अंग शरीर की निरंतर सफाई करते हुए शरीर को स्वच्छ बनाते है ।

तीव्र रोग हमारे दोस्त होते है:
जब व्यक्ति को दस्त लगती है तो शरीर गंदगी से मुक्त होने के लिए दस्त के रूप में शरीर से गंदगी को बाहर करता है | इसी प्रकार जब हम कोई गलत आहार का सेवन कर लेते है या शरीर में अम्ल की मात्रा अत्यधिक बढ जाती है जो व्यक्ति का जी घबराता है और व्यक्ति को लगातार उल्टी होने लगती है | जब शरीर में विकार अत्यधिक बढ़ जाता है, अम्ल की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है तो भी शरीर बुखार के रूप में प्रतिक्रिया देता है और शरीर बहुत अधिक गर्म हो जाता है |

जब नाक में कोई वस्तु चली जाती है जो हमें ज़ोर की छीक आती है | ऑख में कोई गंदगी चली जाती है तो आंखो से लगातार पानी निकलने लगता है | जब हम कोई गलत आहार का सेवन करते है तो त्वचा पर खुजली होने लगती है | जब शरीर के किसी अंग में कोई विकार आ जाता है तो शरीर के उस अंग में सूजन आ जाती है |

इस प्रकार हम देखते है की शरीर की प्रणाली पर कोई संकट आता है तो शरीर विभिन्न रोगों के माध्यम से प्रतिक्रियाए देता है | शरीर व्दारा दी गई प्रतिक्रिया पर हम तुरंत घबरा जाते है और इन लक्षणों पर तुरंत दवाईयों के आक्रमण से रोक लगा देते है और शरीर में गंदगी रह जाती है और यही गंदगी भविष्य में पुन: उपद्रव मचाती है |

रोग होने पर घबराए नही उसे सीढी बनायें :                                                                                                                                                                                      जब भी कोई रोग होता है तो उससे घबराएँ नही उसे स्वास्थ्य प्रदान करने की सीढी बना ले । जब भी किसी रोग के लक्षण प्रगट होते है, हम तुरंत उसे दवा के माध्यम से दबा देते है जब सर्दी हो जाय तो प्रकृति हमें बताती है कि शरीर में भोजन पच नही रहा है, तुरंत दुध व दुध के उत्पादों का सेवन बंद कर दे व हल्के सुपाच्य भोजन पर आ जाये । इसी प्रकार से पाचन सम्बंधित कोई समस्या आये तो आहार का कुछ समय के लिये त्याग कर दे, ताकि पाचन प्रणाली विश्राम पाकर पुन: शक्ति पा जाये और आप स्वस्थ्य हो जायेगें ।

किन्तु यदि उक्त शारीरिक प्रक्रिया (रोग ज्यादा परेशान करें तो) ज्यादा देर जारी रहे तो लापरवाही न करें व तुरंत अपने पारिवारिक चिकित्सकीय से सलाह लेकर चिकित्सा परामर्श अवश्य ले |

Share to...