वायु स्नान व स्वास्थ्य

AIR ELEMENTS

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वायु स्नान व स्वास्थ्य
संसार में सर्वाधिक बीमार कोई प्राणी है तो वह मनुष्य है । क्योकि मनुष्य हमेंशा आप्राकृतिक व दूषित वातावरण में रहता है। इसके ठीक विपरीत अन्य समस्त प्राणी प्रकृति की गोद में शुध्द वातावरण(जहा भरपूर आक्सीजन हो) में रहते है । हम जितना प्रकृति से दूर रहते है उतना ही अधिक बीमार रहते है । हम प्रकृति के पास जाने का प्रयास नही करते है । जबकि प्रकृति हमारे सबसे नजदीक है । हम सन राईज व सन सेट देखने अपने निवास से बहुत दूर जाते है, किंतु रोज होने वाले सन सेट (सूर्यास्त) व सन राईज (सूर्योदय) को देखने का समय नही है । क्या हम कभी अपने मकान की छत पर सुबह-सुबह या रात्री को जाते है? हमें अहसास है कि प्रकृति हमें कितनी ठंडी हवा देती है? क्या हम सुबह उठकर जल्दी टहलने जाते है? ताकि हमारा प्रकृति से सम्पर्क हो सके, हम सुबह जल्दी नही जागते है, जब प्रकृति जागती है तब हम बिस्तर पर सोये रहते है, तो हमारा प्रकृति से कैसे सम्पर्क आयेगा? प्रकृति सुबह व शाम निरंतर शीतल हवा वातावरण मे बहती है | जब हम बंद कमरे में लम्बें समय रहते है तो सर्वप्रथम हमारा रक्त दूषित होता है और शरीर के अंदर गर्मी रहने से शरीर रोगी हो जाता है ।

अशुद्ध वायु स्वास्थ्य के लिए घातक है :मनुष्य शरीर में आहार के प्रवेश करने के दो ही मार्ग है पहला श्वसन मार्ग व्दारा दुसरे मुँह के माध्यम से सेवन किए गिए गए आहार के माध्यम से हम शरीर में प्रवेश कर सकते है । जिस प्रकार गलत आहार का सेवन करने से रोग होते है उसी प्रकार अशुध्द वायु का सेवन करने से शरीर रोगी होता है । शहरी प्रदूषण की वजह से प्रति वर्ष लाखों लोग मौत के मुँह में चले जाते है | इसलिये जितनी सावधानी हम सही भोजन का चुनाव करने में करते है उतनी ही सावधानी व सजगता शुध्द वायु को ग्रहण करने के लिये भी प्रयास करना चाहिए व ऐसा कोई मौका नही छोड़ना चाहिए ताकि फैफड़ों को शुद्ध आक्सीजन प्राप्त हो |

शयन कक्ष में शुध्द वायु का आवागमन सुनिश्चित रखे : जितनी बार हम श्वास लेते है उतनी ही बार शरीर का रक्त बाहरी वायु के सम्पर्क में आता है । इसलिये यथा संभव हो सके शुध्द वातावरण मे रहे व शुद्ध वायु का सेवन करना चाहिए । अपने निवास स्थान व शयन कक्ष में पर्याप्त आक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करना चाहिए ताकि शरीर को भरपूर आक्सीजन की आपूर्ति हो सके ।

मुँह ढँक कर न सोये : प्राय: देखा गया है व्यक्ति मुँह को ढंककर सोता है । सामान्य अवस्था में व्यक्ति प्रति घंटें 8 गेलन कार्बोंनिक अम्ल प्रश्वास के माध्यम से शरीर के बाहर निकालता है । जब आप मुँह ढंककर सोते है, या बंद कमरे में सोते है उतनी ही अधिक जहरीले गैसे हमारे शरीर में जाती है और हम हमेंशा रोगी बने रहते है । प्राय: ठंड के मौसम में कई घरों में शयनकक्ष को पुरी तरह से बंद कर लिया जाता है । मान लिजिये एक कमरे में परिवार के चार सदस्य सो रहे है और कमरे में शुध्द वायु का आवागमन नही है तो एक व्यक्ति करीब 7 घंटें सोता है और परिवार के 4 सदस्य कुल 28 घंटें सोयेगें तो इस प्रकार 28×8 =224 गैलन कार्बोनिक अम्ल कमरे में एकत्र होगा तो सोचिये, परिवार के सदस्य इतनी अशुध्द वायु का सेवन कर कैसे स्वस्थ्य होगें ।

जब निरंतर गर्म व अशुध्द वायु नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश करती है तो शरीर का तापमान बढ जाता है और शरीर रोगी हो जाता है । इसलिये हमारा प्रयास होना चाहिए कि शरीर को भरपूर शुध्द आक्सीजन के सेवन से हमेंशा शीतल व स्वस्थ्य रखने का प्रयास करें ।

शीतल वायु के सेवन से त्वचा के स्नायु संस्थान में जान आती है और शरीर त्वचा के माध्यम से आनन्द का अनुभव करता है । जब शुध्द व शीतल वायु शरीर को स्पर्श करती है तो शरीर के समस्त यंत्र अपनी पूर्ण कार्यक्षमता से कार्य करते है और शरीर निरोगी होता है ।

वायु स्नान से भूख बढ़ती है : वायु स्नान से हमारी भूख बढती है व पाचन शक्ति शक्तिशाली होती है । इसलिये यदि अपनी पाचन प्रणाली को शक्तिशाली बनाना है तो प्रात: काल के शुध्द वातावरण में वायु सेवन करने अवश्य जाना चाहिए ताकि शरीर को शुध्द वायु की आपूर्ति हो सके । इसीलिये जब व्यक्ति प्रात: काल टहलने के साथ-साथ शुध्द वायु का सेवन करता है तो उसका स्नायु संस्थान शांत होता है और स्नायु संस्थान शांत होने से मन की क्रिया शीलता बढ जाती है ।

इसीलिये देखा गया है कि जो नियमित रुप से सुबह टहलने जाते है तो उन्हे शुध्द आक्सीजन प्राप्त होती है जिससे उनकी थायराईड व एड्रीनल ग्रंथि स्वस्थ्य होती है और ऐसे व्यक्ति कभी बुढे नही होते है । इसलिये जब भी सुबह घुमने जाये वहाँ शुध्द हवा में ही जाये व आक्सीजन की अधिकतम प्राप्ति हो सके इस उदेश्य से श्वास की प्राणिक क्रियाएँ भी की जा सकती है । साथ ही अपनी क्षमता के अनुसार हल्का दौडा जा सकता है जिससे फैफडें अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य करेंगें और शरीर को भरपूर आक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी । इस प्रकार हम कह सकते है कि सो रोगों की दवा हवा(आक्सीजन) है । इसलिये आज ही से संकल्प लेवे की हम शुध्द वायु के भरपूर सेवन का अवसर नही खोयेगें और जब भी दूषित वातावरण में हमारी रहने की मजबूरी हो तो मुँह पर कपडा लगा कर रखेगें ताकि कम से कम हम अशुध्द वायु के सेवन से सुरक्षित रह सके ।

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