सर्दी खांसी से कैसे आसानी से मुक्ति पाये ? Easy Home Remedy for Cough and Cold in Hindi

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sardi khasi kaise dure kare |सर्दी खांसी से कैसे आसानी से मुक्ति पाये ? Easy Home Remedy for Cough and Cold in Hindi | Sardi ho to kiya kare | band nak kaise thik kare | sardi hone par kiya khaye

सर्दी खांसी से कैसे आसानी से मुक्ति पाये ? Easy Home Remedy for Cough and Cold in Hindi
COUGH AND COLD MEDICINE-lifestyleexpert125.com

Sardi khasi se asani se kaise mukti paaye- Dr.Jagdish Joshi, lifestyleexpert125

sardi-khasi-kaise-dure-kare-व्यक्ति रोगी कब होता है

Sardi-khasi-kaise-dure-kare -प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार हमारा शरीर तभी अस्वस्थ होता है, जब शरीर में विषाक्त द्रव्य (Toxins) एकत्रित होने लगते हैं । शरीर को शुध्द व स्वस्थ रखने वाले अंग तथा विषाक्त द्रव्यों (Poisons matter) को उत्सर्जित करने वाले अंग जब अपनी पूर्ण कार्यक्षमता के अनुरूप कार्य नहीं कर पाते, तब यह स्थिति उत्पन्न होती है। हमारा शरीर जीवित रहे और उसके क्रियाकलाप सुचारु ढ़ंग से चलते रहें, इसके लिए हमारे शरीर को निरन्तर ऊर्जा व शक्ति की आवश्यकता होती है, जिसकी आपूर्ति के लिए हमें नियमित रूप से भोजन (Proper Diet), पानी (Clean Water) व श्वास (Oxygen) ग्रहण करते रहना होता है। अब नियमित रूप से शरीर व्दारा ग्रहण किए हुए विभिन्न आहार से ऊर्जा तो प्राप्त होती रहती है पर साथ ही आहार से ऊर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया से उत्पन्न पदार्थों के रूप में शरीर में निरन्तर गन्दगी (Toxins) भी एकत्रित होती रहती है । इतना ही नहीं शरीर में नियमित रूप से होने वाली टूट-फूट और चपापचय के कारण भी कई अनावश्यक तत्व शरीर में इकट्ठा होने लग जाते हैं। शरीर से नियमित रूप से गन्दगी का निष्कासन होता रहे, इसके लिए शरीर के चार सफाई कर्मचारी निरन्तर कार्य करते रहते हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शरीर को गन्दगी से मुक्त रखना बहुत आवश्यक है | (और इसके लिए इन प्रमुख सफाई अंगों को शक्तिशाली व कार्यक्षम बनाए रखना बहुत आवश्यक है, ताकि वे अपनी पूर्ण कार्यक्षमता से कार्य कर सके, और शरीर में गन्दगी एकत्र ही न हो ।

मनुष्य शरीर के, सफाई करने वाले चार प्रमुख अंग हैं-                                           

1. त्वचा (Skin),
2. मूत्र संस्थान (Kidney),
3. मल संस्थान (Intestines),
4. श्वसन संस्थान (Lungs),


यदि हमें ज्ञात हो जाए कि फेफड़ों को मजबूत बनाकर कैसे हम शक्तिशाली बनें तो, हमारा शरीर स्वस्थ्य व निरोगी हो सकता है। प्रायः हम इस बात से अनभिज्ञ रहते हैं कि, कैसे फेफड़ों को शक्तिशाली (How to Make Lungs Strong) बनायें। इसके साथ ही हमें यह ज्ञात नहीं होता है कि फेफड़े कितने महत्वपूर्ण अंग हैं । फेफड़े हमारे शरीर में सर्वाधिक मात्रा में आहार (आक्सीजन ) ग्रहण करने वाला अंग है। जब हम सोए रहते हैं, तब भी यह अंग क्रियाशील रहते हैं, इसलिए आवश्यकता है कि शरीर के इस महत्वपूर्ण अंग के बारे में हम जाने कि कैसे इन्हें स्वस्थ रखा जाए, ताकि हम व हमारे परिवार के समस्त सदस्य स्वस्थ व निरोगी रहें ।

श्वसन तंत्र (Respiratory System) अर्थात् फेफड़ों के कार्य, उनकी उपयोगिता और उनको सबल बनाने वाले आहार-विहार एवं जीवन शैली सम्बन्धी साधारण से दिखने वाले, लेकिन प्रभावी और महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर हम जानकारी प्राप्त करेंगे ताकि हम व हमारा परिवार स्वस्थ व निरोगी हो सके |

शरीर का सर्वाधिक शक्तिशाली सफाई करने वाला अंग (The Most Powerful Cleansing Organ of  Body):                                           

फेफड़ा- मनुष्य शरीर में नियमित रूप से पैदा होने वाली गन्दगी का 3% मल(Stool) संस्थान के माध्यम से, 7% स्वेदन संस्थान (Swatting) अर्थात पसीने के माध्यम से, 15% मूत्र (Urine) संस्थान के माध्यम से और 75%फेफड़ों (Carbon dioxide) के माध्यम से नियमित रूप से निष्कासन होता रहता है।

फेफड़ो  की  संरचना (Lungs a human Body)

सीने में दो फेफड़े होते हैं। इनमें से प्रत्येक का वजन 625 ग्राम व 575 ग्राम होता है । फेफड़ों की संरचना (surface area) करीब 70-80 वर्ग मीटर होती है, जो कि त्वचा की तुलना में 40 गुना अधिक होती है । यदि फेफड़ों को एक समान सतह पर बिछा दिया जाए तो करीब 70 वर्ग मीटर (750 वर्ग फीट) स्थान को घेरता है, अर्थात उक्त स्थान किसी टेनिस कोर्ट के बराबर होता है | यदि फेफड़े अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य करें तो इतना बड़ा क्षेत्र श्वास व्दारा ली गई वायु के सम्पर्क में आता है। इससे हम फेफड़े के महत्व को जान सकते हैं, कि इसका क्षेत्रफल कितना अधिक होता है और क्या हम इसके सम्पूर्ण क्षेत्रफल का उपयोग कर पाते हैं?


प्रायः यह देखा गया है कि व्यक्ति फेफड़ों का सही प्रकार और सही विधि से न तो उपयोग करता है और न फेफड़ों को आक्सीजन ग्रहण करने के लिए आदर्श वातावरण (Positive Atmosphere) ही प्रदान करता है । यही वजह है कि यह हमेशा थका-थका, सायनस, सर्दी, दमा जैसे कई कफजनित रोगों(Cough & Cold) से ग्रसित रहता है । इतना ही नहीं फेफड़ों की पूरी क्षमता का उपयोग न कर पाने की वजह से व्यक्तित्व भी प्रभावित होता है ।


मनुष्य अपने फेफड़ों की क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं करता(When Does Not  Make Full Use of Lungs Capacity):

सामान्य अवस्था में मनुष्य अपने फेफड़ों की बहुत ही कम क्षमता का उपयोग करते हैं । प्रायः मनुष्य अपने फेफड़ों की 33% कार्य क्षमता का ही प्रयोग सामान्य जीवन में कर पाते हैं, जब आपके फेफड़ो की कार्यक्षमता का आप केवल 33% ही उपयोग कर पायेगे तो कैसे आपका शरीर स्वस्थ होगा? क्योकि फेफड़े निरंतर आक्सीजन के माध्यम से शरीर को ऊर्जा प्रदान करते है | प्राय: व्यक्ति की जीवनचर्या में व्यायाम, योग, टहलना या अन्य कोई शारीरिक गतिविधियाँ शामिल नहीं होती हैं । जब व्यक्ति कोई शारीरिक अभ्यास नहीं करेगा तो फेफड़े कैसे अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य करेगे, एक तो आप अपने शरीर को सक्रिय नहीं रखते है इसके साथ ही प्रदूषित वातावरण के कारण व्यक्ति को पर्याप्त आक्सीजन भी नहीं मिलता, उल्टा विभिन्न विषाक्त गैसे और रसायन उसके शरीर में पहुँचते रहते हैं। सामान्य श्वास-प्रश्वास के माध्यम से 500 मि.लि. वायु ग्रहण की जाती है, जबकि फेफड़ों की कार्यक्षमता पुरुषों में 3.6 से 6.3 लीटर व महिलाओं में 2.5 से 4.7 लीटर होती है। उक्त तथ्यों से यह पता चलता है कि फेफड़ों की एक आम आदमी अपने फेफड़ो की कार्यक्षमता का कितना कम प्रतिशत उपयोग में लाता है ।


फेफड़े और गाडी के इंजिन में समानता (Similarity Between Lungs and Car Engine ) :                                                                       

यहाँ हम फेफड़ो व गाडी के इंजिन में समानता देखेगे | इस बात को हम किसी वाहन के इंजिन से समझ सकते है | किसी भी प्रकार के वाहन की क्षमता उसके इंजिन की कार्यक्षमता पर निर्भर करती है,जितना अधिक पावरफुल गाडी का इंजिन होगा उतना ही अधिक वाहन की क्षमता होगी, तो यदि हम कमजोर इंजिन के सहारे जीवन जीते है तो कैसे हम जीवन भर स्वस्थ व निरोगी हो सकते है?


फेफड़े शक्ति का भण्डार (Lungs Power Store):                                                                                                                                   

आक्सीजन का हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है । मनुष्य आक्सीजन के बिना जीवित नहीं रह सकता, इसीलिए श्वास व्दारा फेफड़ों में जाने वाली को प्राणवायु कहते हैं । क्या बिना वायु की साइकल पर यात्रा की जा सकती है? क्या बिना वायु के ट्रक से टनों वजन ढ़ो सकते हैं? जितने भी वाहन हैं, उनके पहियों में पर्याप्त मात्रा में हवा का होना बहुत आवश्यक है। उक्त सामान्य उदाहरण हमारे जीवन पर भी उतने ही सत्य सिद्ध होते हैं। हमारी जीवन यात्रा के लिए भी पर्याप्त मात्रा में प्राणवायु की आवश्यकता रहती है और कम प्राणवायु से शरीर स्वस्थ कैसे रह सकता है? कहने का तात्पर्य यह है कि जितना अधिक हम अपने फेफड़ो को दूषित वातावरण में अपने फेफड़ों को पर्याप्त आक्सीजन उपलब्ध करा सकें तो शरीर उतना ही स्वस्थ व निरोगी रहेगा ।


आक्सीजन का चमत्कार (Oxygen  Miracle):                                                                                                                                         

हम जब घर में रहते हैं तो थोड़े से भोजन को भी पचाने के लिए पाचक चूर्ण और दवा-गोलियों का सहारा लेना पड़ता है और वहीं जब हम बाहर घूमने जाते हैं तो सामान्य की तुलना में अधिक आहार खा कर उसे बड़ी आसानी से पचा लेते हैं । पहाड़ी इलाकों के शुध्द वातावरण में जीवन जीने वाले लोग दिन में चार बार खाना खाते हैं और वह बिना किसी औषधि के सहारे के पच जाता है। वही मनुष्य को साधारण भोजन पचाने के लिए क्या-क्या उपाय करने पड़ते हैं और शरीर रोगों से जीवन भर लड़ता रहता है। उक्त बातें शुध्द वायु के महत्व को प्रतिपादित करने के लिए पर्याप्त हैं और यही कारण है कि जब हम बाहर जाते हैं तो अत्यधिक मात्रा में सेवन किए गए भोजन का पाचन भी आसानी से हो जाता है।

हमें आक्सीजन की आवश्यकता क्यों होती है? (Why Do  We Need Oxygen)

अब इस बात पर विचार करना जरुरी हो जाता है कि हमें शुध्द वायु अर्थात् आक्सीजन की आवश्यकता क्यों होती है? हमारे व्दारा भोजन में ग्रहण किए गए आहारीय द्रव्यों के पाचन का अंतिम पाचन कण ग्लुकोज होता है। यही ग्लुकोज रक्त के माध्यम से शरीर की कोशिकाओं तक पहुँचाया जाता है। श्वास के माध्यम से हम जो आक्सीजन लेते हैं, वह भी रक्त के व्दारा प्रत्येक कोशिकाओं तक पहुँच कर ग्लुकोज का ज्वलन करती है । यदि किसी भाग में ग्लुकोज व आक्सीजन न पहुँचे तो वहाँ की कोशिकाओं कार्य करना बन्द कर देती हैं अर्थात् शरीर के उस हिस्से की कोशिकाएँ मर जाती हैं। इसीलिए कई बार जब शरीर का अंग दबा हुआ या असक्रिय होता है तो शरीर के उस अंग में सुन्नता का एहसास होता है । इसलिए जब भी किसी अंग में सुन्नता का एहसास हो तो समझ लेना चाहिए कि वहाँ आक्सीजन का संचार नहीं हो रहा है । ऐसी अवस्था में हमें चौकन्ने होकर फेफड़ों को कार्यक्षम बनाने का प्रयास करना चाहिए, ताकि शरीर इस रोग से मुक्त हो जाए । इस प्रकार हम फैफडो को चिकित्सक (Lungs a Doctor) भी कह सकते है |

ताजी वायु से कम समय में ही विश्राम (Rest in Less Time Than Fresh Oxygen) :                                                                                 

जब हम खुली छत के नीचे सोते हैं तो कम समय में ही नींद से संतुष्टि मिल जाती है, क्योंकि जब हम खुली छत के नीचे सोते हैं अर्थात् खुले आसमान के नीचे सोते हैं तो फेफड़ों को पर्याप्त मात्रा में शुध्द आक्सीजन की प्राप्ति नियमित रूप से होती रहती है और शरीर कम ही समय में ताज़गी का अनुभव करने लगता है और थकान से मुक्त हो जाता है। इसीलिए खुली वायु में सोने पर हमारी नींद सुबह जल्दी खुल जाती है | (sardi-khasi-kaise-dure-kare)और हम ताज़गी का अनुभव करते हैं। वहीं जब हम बन्द कमरे में सोते हैं तो देर तक सोने के बाद भी उठने की इच्छा नहीं होती है । उपरोक्त सभी उदाहरण यह समझाने के लिए पर्याप्त हैं कि शरीर को ऊर्जा प्रदान करने में शुध्द वायु का कितना महत्व है ।

हमारा शयन कक्ष कैसा हो?(How is  Our Bedroom):                                        

हमारी जिन्दगी का एक तिहाई समय शयन कक्ष में ही बीतता है । यदि मान लें कि एक व्यक्ति की उम्र सामान्य अवस्था में 60 वर्ष है तो व्यक्ति 5,18,400 घण्टे जीवन में व्यतीत करता है | यदि मान ले एक व्यक्ति आमतौर पर 7 घन्टे सोता है तो वह कुल 1,51,200 घंटे शयन कक्ष में बिताता है।

यदि हम अपने जीवन का लंबा समय शयन कक्ष में बीताते है तो हमें अपने शयन कक्ष को ऐसा बनाना चाहिए कि शयन कक्ष में शुध्द वायु अर्थात आक्सीजन का प्रवाह सतत बना रहे जो कि श्रेष्ठ स्वास्थ की ग्यारंटी है । यदि हमारा शयन कक्ष हवादार होगा तो हमें गहरी नींद आयेगी और हम ऊर्जावान व स्वस्थ रहेंगे। इसके साथ ही जिस स्थान में हम रहते हैं वहाँ भी शुध्द वायु का प्रवाह सुनिश्चित अवश्य करें। (sardi-khasi-kaise-dure-kare)अपने शयन कक्ष में आइल पेंट नहीं करवाना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार के कलर में अमोनिया, ब्लिचिंग, रेडियो एक्टिव तत्व आदि पाए जाते हैं।

एयर कन्डीशनर की नियमित साफ़ सफ़ाई कराएँ (Clean the Air Conditioner Regularly):                                                                     

व्यक्ति प्रायः अपने शयन कक्ष को वातानुकूलित (Air conditioner) बनाने के लिए सभी प्रकार से शुध्द वायु के आवागमन को बन्द कर देता है, किन्तु वातानुकूलन प्रणाली वर्ष में केवल 3-4 माह के लिए उपयोग में आती है, बाकी के 8-9 महिनों में कमरा, पूर्णतया बन्द होने से, शुध्द वायु के आवागमन से वंचित रहता है । इससे कमरे में नियमित रूप से कार्बोनिक अम्ल (Carbonic Acid) का स्तर बढ़ता रहता है और कमरे में आक्सीजन का स्तर कम होने से व कार्बोनिक अम्ल का स्तर बढ़ने से कमरे में रहने वाले सदस्यों को आक्सीजन मिलना बहुत कम हो जाती है । तो सोचिए, ऐसी स्थिति में घर के समस्त सदस्य कैसे स्वस्थ व निरोगी रह सकते हैं । ऐसे में फेफड़ो के संक्रमित (Lungs Infection) होने की संभावना बढ़ जाती है |

इसके साथ ही एयर कन्डीशनर के एयर फिल्टर का पर्याप्त ढ़ंग से साफ न होने की वजह से (sardi-khasi-kaise-dure-kare) मशीन की नमी पाकर कीटाणु (Bactria) पैदा होने लगते हैं, जिससे फेफड़ों में संक्रमण (Infection) फैलने की पूर्ण संभावना हो जाती है।

इसीलिए यदि घर में ए.सी. लगा हुआ है तो उसकी नियमित देखभाल अवश्य कराएँ । इसके साथ जब ए.सी. प्रयोग में नहीं लाया जा रहा हो जैसे ठण्ड व बारिश के मौसम में तब कमरे में शुध्द वायु के प्रवाह (Circulation of Oxygen) को सुनिश्चित करने के लिए कमरे की खिड़कियाँ व वेंटिलेशन को खुला रखें ।

मच्छर के प्रकोप से बचने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग श्रेष्ठ (Use  of Mosquito Net to Prevent Mosquito Infestation  is Best):           

प्रायः मच्छरों के प्रयोग से बचने के लिए खिड़कियों को बन्द रखा जाता है व मच्छरों बचने के लिए दवाइयों का प्रयोग किया जाता है | किन्तु वे दवाइयाँ पूर्ण रूप से मच्छरों से सुरक्षा प्रदान नहीं करती हैं। मच्छरों से बचाव के लिए मच्छरदानी का ही प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि इसी उपाय से ही मच्छरों से पूर्ण रूप से बचाव होता है । टिकिया या अन्य कोई दवा का प्रयोग वातावरण को भी प्रदूषित करता है। इसके अलावा जब वातावरण में प्रचुर मात्रा में आक्सीजन होती है तब वह बन्द कमरे में ए.सी. में सोया रहता है और जब वह उठता है तो वातावरण पर्याप्त प्रदूषित हो चुका होता है और वह जिस स्थान पर सोता है, उसमें आक्सीजन आने की कोई अवस्था नहीं होती है ।

फेफड़े कैसे कार्य करते हैं? (How do Lungs Work):                                             

हमें फेफड़ो की कार्य प्रणाली को समझना होगा | श्वसन को प्रायः हम श्वास लेना व छोड़ना समझते हैं, लेकिन श्वसन चार भाग में होता है-
• वायुमण्डल से आक्सीजन को नासिका के माध्यम से श्वास नली से होते हुए फेफड़ों तक पहुँचाना | (sardi-khasi-kaise-dure-kare)तथा कार्बन डायआक्साइड को फेफड़ों के माध्यम से शरीर से बाहर निकालना।
• फेफड़ों से आक्सीजन का रक्त में भेजना व कार्बन डायआक्साइड को रक्त से लेकर वायुमण्डल में छोड़ना ।
• फेफड़ों में शुध्द हुए रक्त को हृदय की ओर ले जाना ।
• श्वसन प्रक्रिया पर नियंत्रण करना ।

अपने  फैफड़े  की क्षमता को  कैसे  पहचाने (How to Check If Your Lungs are Healthy at Home):                                                     

यदि आपको श्वास लेने में तकलीफ होती है, थोड़ा सा चलने के बाद हाफ जाते है तो निश्चित ही आपके फेफड़े स्वस्थ नहीं है |

 कैसे बढ़ायें अपने फेफड़ों की कार्यक्षमता (How to Keep Lungs Healthy Naturally) – स्वस्थ शरीर की प्रथम आवश्यकता है कि शरीर के फेफड़े स्वस्थ वातावरण में अपनी पूर्ण कार्यक्षमता से कार्य करें। फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए श्वास की क्रियाएँ व प्राणायाम के अभ्यास बहुत ही लाभदायक होते हैं। (How to strengthen lungs Naturally) श्वास की क्रियाएँ व प्राणायाम के नियमित अभ्यास से फेफड़ों की कार्यक्षमता में अपार वृध्दि होती है। (Lungs Exercise for Asthma) फेफड़ो का नियमित रूप से व्यायाम करने से अस्थमा में चमत्कारिक लाभ होता है | इसके साथ ही प्राणायाम के अभ्यास से मन को भी शांत किया जा सकता है, जिससे परोक्ष रूप से फेफड़ों की कार्यक्षमता में वृध्दि होती है । यहाँ पर ध्यान रखने योग्य बात यह है कि यदि व्यक्ति उच्च रक्तचाप या किसी अन्य फेफड़े जनित व्याधि का शिकार हो तो उसे प्राणायाम किसी विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए, क्योंकि यदि वह किसी रोग विशेष से पीड़ित है तो श्वास की क्रियाओं को करने से लाभ होने की बजाए हानि भी हो सकती है। (How to heal lungs) रोग विशेष की स्थिति में श्वास की क्रियाओं को अत्यन्त धीमी गति से करना चाहिए। इन क्रियाओं और प्राणायाम को प्रातःकाल या सायंकाल खाली पेट ही करना चाहिए।

फेफड़ो के स्वास्थ्य  के लिए  योग (Yoga for Healthy Lungs) :                                                                                       

योग के नियमित अभ्यास से फेफड़ो की कार्यक्षमता में वृध्दि की जा सकती है | इसलिए सीने को विस्तारित करने वाले योग के अभ्यासों को नियमित रूप से करने से फेफड़ो की कार्यक्षमता में अपार वृध्दि होती है |

फेफड़ों के स्वास्थ के लिए वज़न नियंत्रित करें (Control Weight For Lungs Health):                                                                               

फेफड़ों के श्रेष्ठ स्वास्थ के लिए संतुलित वजन का होना बहुत आवश्यक है । पेट का अत्यधिक बढ़ा हुआ वजन फेफड़ों व हृदय की कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल कर फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम करता है, क्योंकि इससे फेफड़ों पर दबाव पड़ता है। इसलिए कहते है की बढ़ा हुआ पेट (Tummy) अस्थमा व बायपास का वारंट है | आज के समय में कोरोनो उन्ही लोगो को अत्यधिक नुक़सान पहुचा रहा है जिनका पेट अत्यधिक बढ़ा हुआ है, क्योकि बढे हुए पेट के कारण हार्ट व लंग्स नीचे की और लटकते है जिससे Heart & Lungs के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है | इसीलिए आज मोटे लोगों में स्लीप एप्निया नामक रोग की वृध्दि हो रही है। इसमें धमनियों में गति करने वाले रक्त में आक्सीजन का स्तर गिर जाता है और कार्बनडायआक्साइड का स्तर बढ़ जाता है। इसके सेवन से फेफड़ों को स्वस्थ रहने मे मदद मिलती है। ओमेगा 3 की प्राप्ति अलसी के अलावा अखरोट का सेवन करने से भी होती है।

 नमक का सेवन कम करें (Reduce Salt Intake):                                                                                                                                   

आहार में अत्यधिक नमक (Excessive consumption of salt) का सेवन शरीर में सूजन बढ़ाने के साथ-साथ फेफड़ों को भी रोग का शिकार बनाता है। नमक का सेवन शरीर का वजन भी बढ़ाता है ।जितना अधिक नमक का आप सेवन करेगे उतना शरीर में पानी कोशिकाओं(cells) में जमा होगा और व्यक्ति उतना अधिक मोटा होगा, जितना अधिक व्यक्ति मोटा होगा उतना ही अधिक उसके फेफड़ो की शक्ति कम होगी, इसलिए अपने आहार से नमक की मात्रा को सिमित करे ताकि आप जीवन भर स्वस्थ हो सके |

शरीर में कफ की मात्रा अधिक होने पर कैसा आहार ग्रहण करें? (What Should be the Diet when we Suffer From Cough?):               

कफ की अधिकता होने पर दुग्ध उत्पाद का त्याग करें:कफ की अधिकता होने पर दूध व दूध से बने पदार्थों का परहेज(Avoid milk and milk products) इसलिए श्रेयस्कर होता है, क्योंकि ये शरीर में कफ की प्रचुरता से बचाते हैं। इन्हें बन्द करने से कफजनित रोगों में लाभ होता है।
पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करें|

पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करे (Drink Plenty of Water):                                                                                                                     

अपनी आहार चर्या में पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करना चाहिए। शीत ऋतु में गुनगुने पानी का निरंतर सेवन लाभप्रद होता है। ग्रीष्म ऋतु मे मटके का ठण्डा पानी पिया जा सकता है, किन्तु अत्यधिक ठण्डा पानी खासतौर पर फ्रिज का कफजनित रोगों की संभावना को ही नहीं बढ़ाता है, बल्कि पाचन सम्बन्धी विकारों (Digestive disorder) को भी सीधा आमंत्रण देता है।

प्रदूषण से बचें (Avoid pollution):                                                                                                                                                         

जो व्यक्ति सिगरेट का सेवन करते हैं और निरंतर वायु प्रदूषित पर्यावरण में रहते हैं, उनके फेफड़ों की कार्यक्षमता में निरंतर कमी आती है। इसलिए सिगरेट के सेवन से बचना चाहिए तथा प्रदूषित वातावरण में जाने से पहले कपड़े से नाक को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। (Smokers lungs) कफ व कफजनित रोगों से शरीर को सुरक्षित रखने के लिए, ठण्डी हवा से शरीर को सुरक्षित रखने के लिए नाक व सिर को कपड़े से ढ़क कर सुरक्षा प्रदान करना चाहिए।

फेफड़ो को  स्वस्थ बनाने  वाला  आहार (Lung Health Supplements):                                                                                                   

कुछ आहार ऐसे होते है जो फेफड़ो के स्वास्थ्य को मजबूत बनाते है | अंगूर, किशमिश, अंजीर, मनुक्का ये आहार फेफड़ो को शक्ति प्रदान करते है | यदि हम इनका नियमित रूप से सेवन करते है तो निश्चित ही हम अपने फेफड़ो को स्वस्थ्य व निरोगी बना पाते है|

कफजनित रोगों का शिकार होने पर आहार क्रम (Diet Plan when Suffering from Cough):                                                                 

प्रातःकाल चाय के विकल्प के रूप में गुड़, अदरक व नीम्बू का काढ़ा
• स्वल्पाहार में कोई मौसमी फल, किशमिश, मुनक्का, अंजीर
• दोपहर का भोजन- 2 चोकर युक्त चपाती, 2-3 कटोरी सब्जी, 1 प्लेट सलाद
• शाम को ताजी सब्जियाँ/फल का रस
• रात्री का भोजन- 1 प्लेट सब्जियों का कचुम्बर/सलाद, 50 ग्राम अंकुरित मूँग व मोठ
• रात्री को सोने के पूर्व खजूर व किशमिश ।

अंत में एक विशेष संदेश (Special message ):                                                                                                                                       

हम करोड़ों रुपये की आक्सीजन जीवन चलाने के लिए खर्च कर देते हैं, किन्तु क्या हम प्रकृति को उक्त खर्च की गई आक्सीजन लौटाते हैं? कदापि नहीं, हम इस बाबद कभी सोचते ही नहीं हैं। आक्सीजन की कीमत का अहसास हमें तभी होता है (sardi khasi kaise dure kare) | जब हमारे किसी परिचित के लिए अस्पताल वाले आक्सीजन की बड़ी राशि वसूलते हैं। प्रकृति से हमें निशुल्क मिलने वाली इस आक्सीजन को प्रकृति को वापिस लौटाइए और खूब पेड़ लगाइए । Sheetali Pranayama karne ke fayde

 

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