श्राद्ध पक्ष 2022 (Shradha Paksha 2023)
श्राद्ध पक्ष 2022 Shradha Paksh 2022 – Dr.JagdishJoshi, Lifestyle Expert 125

श्राद्ध का हमारे धार्मिक संस्कारो में बहुत महत्व है | हम हमारे पित्तरो को श्राद्ध के माध्यम से तृप्त करने का प्रयास करते है | श्राद्ध हमारे धार्मिक संस्कारो का प्रमुख अंग है |
Pitru Paksh 2022 पितृ पक्ष का प्रारम्भ 10 सितम्बर 2022 से 25 सितम्बर2022 तक है | भारतीय परम्परा व हिन्दू पंचाग के अनुसार पितृ पक्ष का प्रारम्भ भाद्रपक्ष मास की पूर्णिंमा से होता है | पितृ पक्ष का समापन अश्विन मास की अमावस्या पर होता है | इस अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या कहा जाता है | इसके अगले दिन से नवरात्री का पर्व प्रारम्भ हो जाता है |
ब्रह्मपुराण मे वर्णित है की मनुष्य को देवताओं की पूजा करने से पहले अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए इससे देवता प्रसन्न होते हैं। इसी वजह से भारतीय समाज में बड़ों का सम्मान और मरणोपरांत पूजा की जाती है। ये पूजा श्राद्ध के रूप में होते हैं जो पितृपक्ष में पड़ने वाली मृत्यु तिथि (तारीख) को किया जाता है | यदि तिथि ज्ञात नहीं है, तो अश्विन अमावस्या की पूजा की जा सकती है | जिसे सर्व प्रभु अमावस्या भी कहा जाता है।
श्राद्ध के दिन हम तर्पण करके अपने पूर्वजों का स्मरण करते हैं और ब्राह्मणों या जरूरतमंद लोगों को भोजन और दक्षिणा अर्पित करते हैं।
आखिर पितृपक्ष का क्या महत्व है ?
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, पूर्वजों की तीन पीढ़ियों की आत्माएं पितृलोक में निवास करती हैं| जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का स्थान माना जाता है। हिंदु शास्त्रो के अनुसार यह क्षेत्र मृत्यु के देवता यम द्वारा शासित है | जो एक मरते हुए व्यक्ति की आत्मा को पृथ्वी से पितृलोक तक ले जाता है। जब अगली पीढ़ी का व्यक्ति मर जाता है, तो पहली पीढ़ी स्वर्ग में जाती है | ये पीढ़िया भगवान के साथ फिर से मिल जाती है |
इसलिए श्राद्ध का प्रसाद नहीं दिया जाता है। इस प्रकार पितृलोक में केवल तीन पीढ़ियों को श्राद्ध संस्कार दिया जाता है | जिसमें यम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पवित्र हिंदू ग्रंथों के अनुसार, पितृ पक्ष की शुरुआत में, सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है।
श्राद्ध पक्ष से जुड़ी पौराणिक कथा :
जब महाभारत युद्ध में महान दानदाता कर्ण की मृत्यु हुई, तो उसकी आत्मा स्वर्ग चली गई थी | जहां उसे भोजन के रूप में सोना और रत्न चढ़ाए गए। हालांकि, कर्ण को खाने के लिए वास्तविक भोजन की आवश्यकता थी | महारथी कर्ण ने स्वर्ग के स्वामी इंद्र से भोजन के रूप में सोने परोसने का कारण पूछा। इंद्र ने कर्ण से कहा कि उसने जीवन भर सोना दान किया था | किन्तु आपने श्राद्ध में अपने पूर्वजों को कभी भोजन नहीं दिया था। कर्ण ने कहा कि चूंकि वह अपने पूर्वजों से अनभिज्ञ था | इसलिए उसने कभी भी उसकी याद में कुछ भी दान नहीं किया। कर्ण द्वारा की गई गलती को सुधारने के लिए कर्ण को 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर लौटने की अनुमति दी गई | ताकि वह श्राद्ध कर सके और उन के पूर्वजो की स्मृति में भोजन और पानी का दान कर सके। इस काल को अब पितृ पक्ष के नाम से जाना जाता है।
विष्णु पुराण। मार्केण्डय पुराण, ब्रम्ह पुराण के अनुसार श्राद्ध :
पूर्वान्ह काल, संध्या व रात्री मे श्राद्ध नही करना चाहिए |
चतुर्दर्शी तिथि को श्राद्ध नही करना चाहिए | किन्तु शस्त्र व दुर्घटना से मृत व्यक्ति का श्राद्ध चतुर्दर्शी को करना चाहिए |
श्राद्ध काल मे यदि कोई अतिथि आ जाये तो उसे सम्मान पूर्वक भोजन करवाना चाहिए |
श्राद्ध मे निमित्त माग कर लाया गया दूध, भैस, और एक खूर वाले जानवर का दूध प्रयोग मे नही लाना चाहिए |
मनु स्मृति, बोधायन स्मृति, श्रीमद भागवत, मत्स्य पुराण के अनुसार श्राद्ध:
मसूर, अरहर, चना, गाजर, कुम्हड़ा(कद्दू) , गोल लोकी, बैगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिघाड़ा, जामुन, पीप्पली, सुपारी, कुलथी, महुआ, अलसी व पीली सरसो श्राद्ध मे वर्जित है |
मृत कुवारे बच्चे की तिथि ज्ञात नही हो तो उनका पंचमी को श्राद्ध किया जाता है |
सोभाग्यवती स्त्री की मृत्यु तिथि ज्ञात नही हो तो उसका नवमी को श्राद्ध किया जाता है |
उन अभी ज्ञात-अज्ञात की मृत्यु थिति ज्ञान नाही हो उन सब का श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या को किया जाना चाहिए |
2 वर्ष से छोटे का कोई श्राद्ध नही किया जाता है |
श्राद्ध के बारे में हमारे अनेक प्रश्न होते है | इन समस्त प्रश्ननो के उत्तर देने का हमारा प्रयास है |
श्राध्द मे अपने पित्रों को भोजन का भोग कैसे लगाए :
श्राद्ध पक्ष मे अपने पित्रों को भोजन का भोग लगाने के पूर्व आपके घर के बाहर आने वाले पक्षियो को भोजन, गाय व कुत्ते को आहार देने के बाद अपने पित्रों को अर्पण करना चाहिए |
श्राध्द में क्या दान करना चाहिए?:
शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध में गाय, तिल, भूमि,नमक, घी आदि दान करने की परमपरा है | इन वस्तुओ का दान करने से जातक को विभिन्न फल प्राप्त होते है |
आप किसी गरीब बच्चे को किताब, कपडे,या अन्य कोई वस्तु भी भेट कर सकते है | गाय को चारा भी डाल सकते है | वृद्धाश्रम में बुजर्गो को भोजन भी करा सकते है | अंध व विकलांगो को भोजन भी करा सकते है | आप की जो भी श्रध्दा या आर्थिक स्थिति के अनुसार आप उचित दान कर सकते है |
श्राद्ध में कौन से सब्जी बनाये? :
श्राद्ध के दिनों में दूध से बनी हुई खीर, दूध से बनी हुई मिठाईया, जो, धान, तिल, गेहूँ , अनार, आवला, नारियल, अंगूर, चिरोंजी, मटर, सरसो का तेल का प्रयोग करना चाहिए |
श्राद्ध के दिनों में पित्रों के लिए काले तिल से तर्पण करना चाहिए
श्राद्ध मे कौनसी दाल बनानी चाहिए?:
पितृ पक्ष मे मूंग व उड़द की दाल का प्रयोग किया जा सकता है | किन्तु उक्त दिवस मे मसूर की दाल का प्रयोग नही करना चाहिए |
कुत्ते, गाय, चीटी, कौए व देवताओ को आव्हान कर भोजन कराये इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराये |
श्राद्ध मे ब्रांहणों को शृध्दा पूर्वक आमंत्रित करे | उन्हे दक्षिण दिशा मे बैठाए | क्योकि पित्रों का वास दक्षिण दिशा मे होता है | अपने हाथ मे जल, अक्षत व तिल लेकर संकल्प ले | यजमान को भोजन करवाने के पश्चात उचित दक्षिणा देवे |
चावल की खीर :
श्राद्ध पक्ष में चावल की खीर अवश्य बनाये | चावल की खीर में इलायची व अन्य सूखे मेवों का प्रयोग अवश्य करे | किन्तु केशर का प्रयोग न करे | क्योकि केशर गर्म होती है | श्राद्ध पक्ष के दौरान वातावरण में अत्यधिक गर्मी होती है | इसके साथ ही व्यक्ति के शरीर में पित्त की मात्रा भी बड़ी रहती है | इसलिए खीर में गर्म पदार्थो का प्रयोग न करे
पोदीना चावल (Podina Rice):
चावल मे पोदीना मिलाकर पोदीना चावल बना सकते है | आप इस आहार मे ताजा दही भी मिला सकते है | आप इस आहार को श्राद्ध के दिनो मे प्रयोग मे ला सकते है |
दाल पालक (Dal paalk ka Shorba):
दाल पालक को मिलाकर बनने से एक स्वादिष्ट आहार बन जाता है | दाल मे पालक मिलाकर सेवन करने से दाल सुपाच्य हो जाती है | उक्त दाल पालक का आहार आसानी से पच जाता है |
ग्वार फली :
इस मौसम मे बाजार मे पर्याप्त मात्रा मे ग्वार फली बाजार मे आती है | यदि इस अवसर पर इसका सेवन किया जाय तो स्वास्थ लाभ भी प्राप्त होता है| यदि फली के साथ दही, तुवर की दाल व मूंग की दाल का सेवन इसे स्वादिष्ट व पोषण प्रदान करता है |
बाजरे की खिचड़ी :
बाजरे व मूंग की दाल की खिचड़ी बहुत स्वादिष्ठ होती है |इस खिचड़ी मे लहसुन, अदरक व प्याज की आवश्यकता नही होती है | इस खिचड़ी के सेवन से स्वाद तो मिलता ही है और पाचन भी आसान होता है|बाजरे का खिचड़ा गुड व घी के साथ स्वाद का आनंद देता है
सीताफल की ख्रीर :
इस मौसम मे बाजार मे भरपूर मात्रा मे सीताफल आते है | सीताफल व दूध की खीर बनाने से स्वाद तो अनमोल होता ही है साथ ही यह स्वास्थ्यवर्धक आहार भी है | इसमे मे आप सूखे मेवे व किशमिश भी मिला सकते है |
कद्दू की सब्जी व पूरी :
इन दिनो बाजार मे भरपूर मात्रा मे कद्दू की आवक होती है | यदि आप कद्दू की सब्जी को पूरी का सेवन करते है तो आप बेजोड़ स्वाद का आनंद ले सकते है |
पालक पनीर :
इस अवसर पर आप पालक व पनीर की सब्जी भी बनाकर सेवन कर सकते है| इस आहार के साथ आप मूंग की दाल या तुवर की दाल का सेवन भी कर सकते है |
इस प्रकार आप श्राध्द पक्ष मे विभिन्न प्रकार के आहार बनाकर अपने पित्रों को शृध्दा अर्पित कर पोषक आहार का सेवन कर सेहतमंद हो सकते है |
क्या श्राद्ध पक्ष मे अंडा खा सकते है?:
श्राद्ध पक्ष मे जहा तक हो सके सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए | इसलिए इस अवधि मे अंडे का सेवन न करे |मांसाहार के सेवन से भी बचना चाहिए |
श्राद्ध में क्या नहीं खाना चाहिए?:
श्राद्ध में हमें पवित्र आहार का सेवन करना चाहिए | श्राद्ध के दिनो मे शराब, नान वेज, प्याज, लहसुन का सेवन भी नहीं करना चाहिए | वैसे भी इस मौसम में बढ़ जाती है | श्राद्ध के दिनों में इतने अधिक गर्मी पड़ती है की हिरण भी काले पड़ जाते है | इसी वजह से इन दिनों तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए | क्योकि यदि हम शराब, नान वेज, प्याज, लहसुन का सेवन करते है तो शरीर में पित्त की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है | यही पित्त हमें बुखार व एसिडिटी का शिकार बना देता है |
श्राद्ध के दिनों में बेंगन भी नहीं खाना चाहिए | वैसे भी अनेक स्वास्थ्य के सजग लोग दिवाली के बाद ही बेंगन का सेवन करते है | इसके साथ ही श्राद्ध के दिनों में काली उड़द की दाल, काला चना, काला जीरा, काला नमक, काली सरसो का भी सेवन नहीं करना चाहिए |
शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध के दिनों में तेल मालिश व साबुन का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए | हमारे पूर्वजो ने जो भी नियम व संस्कार बनाये है उसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य है | प्राय: नई पीढ़ी के लोग इसे नहीं मानते है | श्राध्द के दिनो मे नाखून भी नही काटना चाहिए |पित्रों की आयु कितनी होती है?:
हमारे धर्म शास्त्रो के अनुसार पित्रों का निवास ऊर्ध्व भाग मे माना जाता है |ये आत्माए मृत्यु के बाद एक से 100 वर्षो तक मृत्यु से पुनर्जन्म तक रहती है |
घर में पित्रो का स्थान कहाँ होना चाहिए?:
अपने घरो में पित्रो की तस्वीर उत्तर दिशा में लगानी चाहिए | हमारे शास्त्रों के अनुसार पित्रो की तस्वीर का मुंह हमेशा दक्षिण दिशा की और होना चाहिए | दक्षिण दिशा क यम की दिशा माना जाता है |
आवश्यक जानकारी :
उक्त जानकारी विभिन्न धर्म ग्रंथो व विद्वानों से प्राप्त जानकारी के आधार पर ली गयी है | अलग-अलग सम्प्रदाय के अपने मत हो सकते है |
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