Water Tharaphy

Water therapy in hindi

Water therapy in hindi

प्राकृतिक चिकित्सा से पाये अनमोल स्वास्थ्य

वर्तमान समय में मानव समाज विभिन्न रोगों से त्रस्त है | परिवार का कोई सदस्य ऐसा नही होगा जो किसी न किसी बीमारी का शिकार होगा | पुराने समय में अस्वस्थ्य व्यक्ति मुश्कील से मिलते थे, किन्तु आज तो ढूँढे से स्वस्थ्य व्यक्ति नही मिलते है | उक्त स्थिति पढे लिखे व आर्थिक रूप से सम्पन्न सभ्य समाज की है | गरीब व कम पढे लिखे लोगों का तो भगवान ही मालिक है |

आखिर व्यक्ति बीमार  क्यों होता है? व्यक्ति बीमार होने का मुख्य कारण है की उसके शरीर के सम्पूर्ण सफाई कर्मी अंग आंते, त्वचा, फैफड़े  व गुर्दे अपनी पूर्ण कार्यक्षमता से कार्य नही करते है | जब शरीर के उक्त सफाई कर्मी अंग जब अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य नही करते है तो शरीर में विभिन्न प्रकार के रोगों के लक्षण प्रगट होते है | जब भी कभी किसी भी रोग के लक्षण प्रगट होते है तो हम तुरंत चिकित्सक के पास जाते है | चिकित्सक रोगों के लक्षणों के आधार पर रोगी को दवाईयों का परामर्श देते है | किन्तु वास्तव में रोग का मुख्य कारण शरीर के विभिन्न अंगों में एकत्रित गंदगी है, चिकित्सक शरीर के संबन्धित अंगों की गंदगी को दूर करने के स्थान पर रोगों की वजह से उत्पन्न लक्षणों के आधार पर चिकित्सा कर रोगी को राहत प्रदान कर देता है | किन्तु  चिकित्सा लेने के कारण रोग के मूल कारण अर्थात शरीर के विभिन्न अंगों में गंदगी एकत्र होने का सिलसिला खत्म नही होता है और व्यक्ति का चिकित्सक के साथ स्थायी संबंध हो जाता है और व्यक्ति स्वस्थ रहने के लिए विभिन्न चिकित्सा पध्दतियों में जीवन भर के लिए उलझ के रह जाता है |

किन्तु यदि व्यक्ति अपने शरीर के विभिन्न सफाई कर्मी अंगों आंते, त्वचा, फैफड़े  व गुर्दे को पूर्ण कार्यक्षम बनाते हुए स्वस्थ्य जीवन शैली के नियमों का पालन करते है तो कोई कारण नही है की हमारा परिवार व मानव समाज स्वस्थ्य होगा व उन पर चिकित्सा का अनावश्यक व्यय का भार भी नही पड़ेगा |

जल में भीगी हुई पट्टी लपेट प्राकृतिक चिकित्सा का एक अनमोल  दिव्य प्रयोग है | शरीर के विभिन्न अंगो की पट्टियों के माध्यम से हम शरीर के अनेक रोगो को दूर कर सकते है | इस प्रकार पट्टी लपेट एक वरदान के स्वरूप प्रयोग है जिसके  नियमित प्रयोग से  हम मानव समाज का कल्याण कर सकते है |

यहां  हम शरीर के विभिन्न भागो में पट्टियों का प्रयोग कैसे करते है व पट्टियों का क्या महत्व है और पट्टीया किस प्रकार कार्य करती है |

जल की पट्टी : कब्ज व गर्मी से मुक्ति

जल की गीली पट्टी : जल की पट्टी को बार-बार बदलकर गीला कर लगा के रखते है  तो उस पट्टी को ठंडी गीली पट्टी कहते है |

किन्तु गीली पट्टी  के ऊपर गरम कपड़ा या फलालेन से ढकते है तो  पट्टी के अंदर ताप पैदा होता है | पट्टी के अंदर तापमान बढ़ने से ही रक्त संचार में लाभ होता है | यदि पट्टी के अंदर का तापमान नही बढ़ता है तो यथेष्ट लाभ प्राप्त नही होता है |

जल की पट्टी कैसे रखे? : जल की पट्टी बहुत ही सरल व चमत्कारिक परिणाम देने वाला प्राकृतिक चिकित्सा का प्रयोग है | जल की पट्टी को खाली पेट या भोजन के 2 घंटो बाद रखा जा सकता है | इस पट्टी के प्रयोग से आंतों की अनावश्यक गर्मी दूर होती है और आंतों में चिपका पुराना मल ढीला होता है | इस प्रकार इस पट्टी के प्रयोग से व भोजन के उचित सेवन से व्यक्ति जीवन भर कब्ज, ऐसिडिटी, पेट की गर्मी व अन्य रोगों से मुक्त रहता है |

जल की पट्टी के लिए आवश्यक सामग्री: जल की पट्टी के प्रयोग के लिए छोटा नैपकीन या कोई सूती कपड़ा रहता है |

जल की पट्टी की समयावधि: जल की पट्टी को 15-45 मिनिट या उसके भी अधिक समय के लिए रख सकते है| इसे रोग भी रखे को शरीर को कोई नुकसान नही होता है | इसकी समयावधि व्यक्ति के शरीर की प्रकृति व रोग की तीव्रता के अनुसार घटाई व बढाई जा सकती है |

 

गर्मी में आनंद देने वाला जल की पट्टियों के प्रयोग : गर्मी में मौसम में भीषण गर्मी में सम्पूर्ण प्रकृति परेशान हो जाती है | गर्मी के मौसम में सम्पूर्ण शरीर आँखों में जलन होती है | ऐसी अवस्था में कोई दवा भी राहत नही देती है |  ऐसी अवस्था में शरीर के विभिन्न अंगो पर ठंडे पानी की पट्टी चमत्कारिक लाभ देती है | पट्टियों का प्रयोग शरीर को भीषण गर्मी से राहत देता है | आवश्यकता है केवल एक कदम बढ़ाने की ताकि आप इसका प्रयोग कर गर्मी की परेशान कर देने वाले मौसम में आनंद दायी शीतलता का आनंद प्राप्त करे |

ठंडी आँखों की पट्टी : जब भी आप गर्मी से परेशान हो आंखो में जलन हो थकान हो, ऐसी अवस्था में ठंडे पानी की पट्टी से चमत्कारिक लाभ प्राप्त कर सकते है | खास तौर पर जो व्यक्ति या बच्चे कंप्यूटर पर बहुत अधिक देर बैठते है , टीवी बहुत अधिक देर देखते है, मोबाईल स्क्रीन पर बहुत व्यस्त रहते है उन्हे उक्त पट्टी चमत्कारिक लाभ देती है |

आवश्यक सामग्री : 1 ठंडा नैपकींन,  1 पतला 6 इंच चौड़ा व 2 फीट का सूती कपड़ा व फ्रिज/मटके का ठंडा पानी |

विधि : नैपकीन को ठंडे पानी में गीला कर ले , नैपकीन में पर्याप्त पानी रहने दे | इस नैपकीन को आंखो पर लगा कर ऊपर से सूती कपड़े से हल्का सा बांध ले व पीठ के बल लेट जाये | इस प्रकार 15-20 मिनिट तक इस अवस्था में रह सकते है | यदि ज्यादा लंबे समय तक इस प्रयोग को करना है तो पट्टी को पुन: ठंडे पानी से गीला कर के लगा सकते है | इस प्रयोग को 15-20 मिनिट से लेकर 1-2 घंटो तक भी कर सकते है |

पेडु  की ठंडी पट्टी : पेडू की ठंडी पट्टी आंतों की गर्मी को शान्त करती है और पेट के मल को ढीला करती है | इस पट्टी के नियमित प्रयोग से व्यक्ति कब्ज व ऐसिडिटी से मुक्त होता है |

आवश्यक सामग्री : 1 ठंडा नैपकींन व फ्रिज/मटके का ठंडा पानी |

विधि : पीठ के बल लेट जाय व  नैपकीन को फ्रिज/मटके के पानी से पर्याप्त गीला कर ले,  नैपकीन में पर्याप्त पानी रहने दे |  | इस प्रकार 20-30 मिनिट तक इस अवस्था में रह सकते है | यदि ज्यादा लंबे समय तक इस प्रयोग को करना है तो पट्टी को पुन: ठंडे पानी से गीला कर के लगा सकते है | इस प्रयोग को 15-20 मिनिट से लेकर 1-2 घंटो तक भी कर सकते है |

रीढ की ठंडी पट्टी : हमारी रीढ़ संपूर्ण शरीर का आधार है | जब तक हमारी रीढ़ ऊर्जा से भरी रहती है उतना ही हमारा शरीर स्वस्थ्य व निरोगी रहता है | स्वस्थ्य शरीर के लिए रीढ़ का स्वस्थ्य होना बहुत आवश्यक है | अत्यधिक गर्मी, अत्यधिक देर बैठे रहना, अत्यधिक देर तक वाहन चलाना व अन्य शारीरिक गतिविधियों की वजह से रीढ़ थक जाती है जिसका असर होता है की हम थके-थके ऊर्जाहीन हो जाते है | 

किन्तु यदि हम रीढ़ पर ठंडे पानी की पट्टी का प्रयोग करते है तो रीढ़ पुन: ऊर्जावान हो जाती है |    ठंडे पानी के प्रयोग से रीढ़ पुन: ऊर्जावान हो जाती है | इस प्रयोग को करने के बाद शरीर की थकान दूर हो जाती है |

आवश्यक सामग्री : 1 बड़ा टर्किश टावेल व फ्रिज/मटके का ठंडा पानी |

विधि : सर्वप्रथम प्लास्टिक की चटाई या दरी को जमीन पर बिछा दे, टर्किश टावेल को फ्रिज/मटके के पानी से पर्याप्त गीला कर ले,  टर्किश टावेल में पर्याप्त पानी रहने दे |  अब इस टर्किश टावेल को 6 इंच चौड़ा मौड़ ले व  चटाई/दरी/जमीन पर बिछा दे | टर्किश टावेल को चित्र में दिखाये अनुसार ऐसा बिछाए की रीढ़ का अंतिम सिरा  से टावेल की लंबाई प्रारम्भ हो व गार्डन के वहा उसे रोल कर दे, ताकि गर्दन को पर्याप्त आराम मिले | इस प्रकार 20-30 मिनिट तक इस अवस्था में रह सकते है | यदि ज्यादा लंबे समय तक इस प्रयोग को करना है तो पट्टी को पुन: ठंडे पानी से गीला कर के लगा सकते है | इस प्रयोग को 15-20 मिनिट से लेकर 1-2 घंटो तक भी कर सकते है |

विशेष लाभ : रीढ़ की पट्टी का विशेष लाभ तब मिलता है जब आप पेडू पर व आंखो पर भी ठंडे पानी की पट्टी का प्रयोग करते है | इसके साथ यदि आप इस पट्टी के दौरान मधुर संगीत भी सुनते है तो आपका शरीर तो आराम पाता ही है साथ ही मस्तिष्क की थकान भी दूर होती है |

इसलिए जब भी रीढ़ की ठंडी पट्टी का प्रयोग करे तो सिर व पेडू पर ठंडी पट्टी का प्रयोग अवश्य करे |

शरीर के विभिन्न अंगो की पट्टिया: शरीर के विभिन्न अंगों पर पट्टी की जाती है वह पट्टी उस अंग की पट्टी कहलाती है | साफा लपेट, गले की लपेट, छाती की लपेट,पेडू की लपेट, टी लपेट, हाथो की लपेट, पैरों की लपेट, चादर लपेट  व अन्य लपेट इस श्रेणी में आते है |

सभी प्रकार की लपेट ढँकी हुई पट्टी के रुप में होती है | केवल साफा लपेट व भीगी गीली पट्टी पर कभी भी गरम या फलालेन  के कपड़े से कभी भी नही ढकते है |

जब भीगी लपेट का सम्पूर्ण शरीर पर प्रयोग किया जाता है तो उसे चादर लपेट कहते है | सम्पूर्ण शरीर को चादर से लपेटने के बाद ऊपर से कंबल लपेटते है | इसका भी सिध्दांत गीली लपेट के समान ही होता है |

आखिर लपेट का क्या विज्ञान है? : यहा हम साफा लपेट को छोडकर गले की लपेट, छाती की लपेट,पेडू की लपेट, टी लपेट, हाथो की लपेट, पैरों की लपेट की चर्चा करेगे की कैसे लपेट वैज्ञानिक रूप से कैसे कार्य करती है ?

जब हम ठंडे पानी की लपेट लगते है और ऊपर से गरम कपड़े की पट्टी लगाते है तो सर्वप्रथम ठंडी पट्टी शरीर की गर्मी से गरम होती है | इस प्रकार सूती पट्टी से भाप निकलती है और इस भाप को गरम कपड़ा शरीर के संबन्धित अंग से बाहर नही जाने देता है और गर्मी उस संबधित अंग पर रह जाती है | इस प्रकार इस संबधित अंग में विषाक्तता दूर होती है और संबधित अंग में रक्त का संचार तेज होने से वह अंग अपनी पूर्ण कार्य क्षमता से कार्य करता है व संबधित अंग का रक्त संचार व्यवस्थित होता है | इस प्रयोग से शरीर में सफेद रक्त कणिकाओ में वृध्दि होती है | लपेट के प्रयोग से जिस अंग पर हम इसका प्रयोग कराते है वहां के दूषित पदार्थ दूर होते है और व्यक्ति वह अंग गंदगी से मुक्त होकर स्वस्थ्य व निरोगी करता है | जब भी कोई अंग गंदगी से परिपूर्ण होता है तो उस अंग की गंदगी को निकालने का कार्य लपेट करती है | यदि किसी को कोई चर्म रोग है किसी को संबन्धित अंग पर सूजन है तो तो लपेट चमत्कारिक परिणाम देती है |

जब छाती की लपेट को जांघ के जोड़ो तक ले जाते है  तो इसे मध्य शरीर की लपेट कहते है | जिन व्यक्तियों को चादर लपेट नही कर सकते उन्हे मध्य शरीर की लपेट किया जाना लाभ प्रद होता है |

मस्तिष्क को शांत व शीतलता प्रदान करे : साफा लपेट

साफा लपेट : साफा लपेट एक बहुत ही अनमोल प्रयोग है जो की मस्तिष्क को चमत्कारिक लाभ देता है | इस लपेट के माध्यम से मस्तिष्क को पर्याप्त शीतलता प्राप्त होती है और मस्तिष्क की अनावश्यक गर्मी दूर होती है व मस्तिष्क को शीतलता प्राप्त होती है |

स्वस्थ्य व्यक्ति की पहचान सिर ठंडा, पेट नर्म व पैर गरम होना चाहिए | सिर को ठंडा रखने में साफा लपटे से श्रेष्ठ कोई उपाय नही है |

साफा लपेट के लिए आवश्यक सामग्री: 2 नग 6  इंच चौड़ी व 1.5 मीटर लंबी सूती पतले कपड़े की पट्टीया |सूती पतले कपड़े की पटटियो का कपड़ा पतला होना चाहिए | इस पट्टी के प्रयोग के लिए लठे का पतला कपड़ा या पुरानी पतली सूती चादर का कपड़ा, रज़ाई की खोल का पुराना कपड़ा या अन्य कोई सूती पतला कपड़ा भी हो सकता है |

साफा लपेट की विधि : साफा लपेट के लिए सर्वप्रथम सूती पट्टियों को रोल बनाकर ठंडे पानी में 10-15 मिनिट के लिए गला दे | पानी में रखने के 10-15 मिनिट बाद पट्टियों को थोड़ा सा  निचोड़ ले ताकि पट्टियों में पर्याप्त पानी की मात्रा व नमी रहे | ध्यान रखे की पट्टियों से पानी टपकाना नही चाहिए |

साफा लपेट कैसे करेगे ?: जिस व्यकित को साफा लपेट करना है उसके सम्पूर्ण सिर व चेहरे पर नियमित रूप से पट्टी को लपेटना है | लपेट इस प्रकार से होनी चाहिए ताकि नाक का आगे वाला भाग खुला रहे | पट्टी सामान्य रूप से लपेटना है | पट्टी न तो अधिक टाईट होनी चाहिए और ना ही ढीली होनी चाहिए | पट्टी सहज व आसानी से लपेटी होनी चाहिए |

पट्टी की 4-5 लपेट सिर के प्रत्येक भाग पर लपेटी होनी चाहिए | पट्टी के गरम होते ही उसे ठंडे पानी से गीला कर दे | ध्यान रखे की पट्टी हमेंशा गीली रहनी चाहिए ताकि मस्तिष्क को पर्याप्त ठंडक प्राप्त होती रहे |

साफा लपेट की विधि : साफा लपेट के लिए सर्वप्रथम सूती पट्टियों को रोल बनाकर ठंडे पानी में 10-15 मिनिट के लिए गला दे | पानी में रखने के 10-15 मिनिट बाद पट्टियों को थोड़ा सा  निचोड़ ले ताकि पट्टियों में पर्याप्त पानी की मात्रा व नमी रहे | ध्यान रखे की पट्टियों से पानी टपकाना नही चाहिए |

साफा लपेट की समयावधि: साफा लपेट को 45 मिनिट से लेकर 1 घंटे या उसके अधिक अवधि के लिए भी रख सकते है गले की लपेट: गले की लपेट प्राकृतिक चिकित्सा का एक अनमोल प्रयोग है |  गले की लपेट थायराईड ग्रंथि के रोग, गले का दर्द, गले में संक्रमण, गले की सूजन,स्पान्डोलाईटिस व अन्य गले संबन्धित विकारो में चमत्कारिक लाभ देती है|

गले के रोग व थायराईड से मुक्ति प्रदान करे: गले की लपेट

गले की लपेट के लिए आवश्यक सामग्री: 1 नग 6  इंच चौड़ी व 1.5 मीटर लंबी सूती पतले कपड़े की पट्टी| सूती पतले कपड़े की पटटियो का कपड़ा पतला होना चाहिए | 1 नाग 8 इंच चौड़ी व 1.5 से 1 मीटर लंबी गरम कपड़े की पट्टी/फलालेन का कपड़ा |

 

गले की लपेट कैसे करेगे?: गले की लपेट के लिए सर्वप्रथम सूती कपड़ी की पट्टी का रोल बना ले व इसे 10-15 मिनिट पानी में गला दे | पानी में गला देने के पश्चात इस पट्टी को अच्छी तरह से निचोड़ ले, पट्टी में पर्याप्त नमी रहनी चाहिए  | पट्टी को निचोड़ने के पश्चात, इस पट्टी को गले पर अच्छी तरह से लपेट दे | ध्यान रखे की लपेट अत्यधिक टाईट न हो | इस सूती पट्टी को लपेटने के पश्चात ऊपर से गरम कपड़ा अच्छी तरह से लपेट ले | गरम कपड़ा इस प्रकार से लपेटे की ठंडी सूती पट्टी पूर्ण रूप से ढँक जाये |

गले की लपेट की समयावधि: साफा लपेट को 1 घंटे से लेकर 1.30 घंटे के लिए भी रख सकते है | यदि रोगी को इस समयवधि के पूर्व अच्छा नही लगे तो पट्टी को समय के पूर्व भी खोला जा सकता है |

विशेष सावधानी :  गले की लपेट को करते समय यदि रोगी को अत्यधिक ठंडक लगती है तो रोगी के गले को गर्म पानी की थैली या नैपकींन से गरम कर ले | रोगी के गले को गरम करने के लिए सरसो के तेल की मालिश भी की जा सकती है |

छाती की लपेट: कफ व कफ जनित रोग में चमत्कारिक परिणाम

छाती की लपेट : छाती की लपेट कफ रोग से मुक्ति देने वाला एक अनमोल प्रयोग है | कफ रोग होने पर इससे सरल व आसान कोई प्रयोग नही है जो आपको कफ संबधित रोगो से आसानी से मुक्त दे दे |

 

छाती की  लपेट के लिए आवश्यक सामग्री: 1 नग 6  इंच चौड़ी व 1.5 मीटर लंबी सूती पतले कपड़े की पट्टी | सूती पतले कपड़े की पटटियो का कपड़ा पतला होना चाहिए | 1 नाग 8 इंच चौड़ी व 1.5 से 1 मीटर लंबी गरम कपड़े की पट्टी/फलालेन का कपड़ा |

छाती की लपेट कैसे करेगे?: छाती  की लपेट के लिए सर्वप्रथम सूती कपड़ी की पट्टी का रोल बना ले व इसे 10-15 मिनिट पानी में गला दे | पानी में गला देने के पश्चात इस पट्टी को अच्छी तरह से निचोड़ ले, पट्टी में पर्याप्त नमी रहनी चाहिए  |

गले से लेकर नाभि के ऊपर वाले भाग तक के सम्पूर्ण शरीर को बिना बाहो के बनियान के समान लपेटना है |पहले भीगे कपड़े को छाती पर  बाई और रखकर गले के पास से पीठ की और ढकते हुए  दाहिने हाथ केनीचे से लेकर छाती पर लाना चाहिए , फिर इस कपड़े को बाए हाथ  के नीच, पीठ, दाहिने  गार्डन टहता दाहिनी छाती के ऊपर से नाभि तक लाकर समाप्त करना जरूरी है | इस लपेट के ऊपर गरम कपड़ा लपेटते है |

पट्टी को निचोड़ने के पश्चात, इस पट्टी को छाती पर चित्र में दिखाये अनुसार  अच्छी तरह से लपेट दे | ध्यान रखे की लपेट अत्यधिक टाईट न हो | इस सूती पट्टी को लपेटने के पश्चात ऊपर से गरम कपड़ा अच्छी तरह से लपेट ले | गरम कपड़ा इस प्रकार से लपेटे की ठंडी सूती पट्टी पूर्ण रूप से ढँक जाये |  यदि ऐसी अवस्था में रोगी को अत्यधिक ठंडक का अहसास हो तो गरम पानी की थैली से छाती की धीमें-धीमें हल्का सेक कर ले | ध्यान रखे अत्यधिक गरम प्रयोग सीने पर अधिक समय के लिए कदापि न करे | गरम प्रयोग अत्यधिक कम व सीमित समय के लिए ही किया जाना चाहिए | गरम प्रयोग का उदेश्य केवल कुछ समय अर्थात  10-20 सेकंड के लिए छाती को गर्माहट प्रदान करना है |

छाती की लपेट की समयावधि: छाती की लपेट को 1.30 घंटे के लिए रख सकते है | यदि रोगी को इस समयवधि के पूर्व अच्छा महसूस नही करे तो तो पट्टी को निश्चित समय के पूर्व भी खोला जा सकता है |

 

 

शीत ऋतु में छाती की लपेट होने के पश्चात सम्पूर्ण शरीर को गरम कपड़े या कंबल से लपेट ले | गर्मी के मौसम में सूती चादर से शरीर को ढँक सकते है | लपेट खोलने के बाद शरीर को भीगे टावेल से रगड़ रगड़ के पोछ कर गरम कर लेना चाहिए | इस लपेट के लिए 1.30 घंटे का समय पर्याप्त है | इस अवधि को रोगी की प्रकृति के अनुसार घटा या बढ़ा सकते है | यदि रोगी का जी घबराए तो समय से पूर्व उक्त प्रयोग को समाप्त कर सकते है |

छाती लपेट का प्रयोग फेफडो की सभी प्रकार की बीमारियो में चमत्कारिक लाभ देता है | सर्दी व सर्दी के ज्वर में  छाती की लपेट जादू का कार्य करती है | यदि व्यक्ति की नाक बहती है तो इस के प्रयोग से तुरंत लाभ होता है |

पट्टी को निचोड़ने के पश्चात, इस पट्टी को पेडु अर्थात नाभि के ठीक नीचे व प्रजनन अंग के ऊपर की और  पर चित्र में दिखाये अनुसार  अच्छी तरह से लपेट दे | ध्यान रखे की लपेट अत्यधिक टाईट न हो | इस सूती पट्टी को लपेटने के पश्चात ऊपर से गरम कपड़ा अच्छी तरह से लपेट ले | गरम कपड़ा इस प्रकार से लपेटे की ठंडी सूती पट्टी पूर्ण रूप से ढँक जाये |  यदि ऐसी अवस्था में रोगी को अत्यधिक ठंडक का अहसास हो तो गरम पानी की थैली से गरम कपड़े के ऊपर धीमें-धीमें हल्का सेक कर ले |   गरम प्रयोग अत्यधिक कम व सीमित समय के लिए ही किया जाना चाहिए | गरम प्रयोग का उदेश्य केवल कुछ 10-20 सेकंड के लिए पेडु को गर्माहट प्रदान प्रदान करने के उदेश्य से किया जाता है |

छाती की लपेट की समयावधि: छाती की लपेट को 1 घंटे से लेकर 1.30 घंटे के लिए भी रख सकते है | यदि रोगी को इस समयवधि के पूर्व अच्छा नही लगे तो पट्टी को समय के पूर्व भी खोला जा सकता है |

घुटने की सूजन को कम करे :घुटने की लपेट

 

घुटने की लपेट: घुटने की लपेट घुटने की सूजन दूर करने में चमत्कारिक लाभ देती है | जब भी शरीर में विषाक्त पदार्थ एकत्र हो जाते है तो इस वजह से शरीर के किसी भी अंग में सूजन या दर्द हो जाता है | जब घुटने सूजे हुए लगे और उनमें दर्द हो तो घुटने की लपेट चमत्कारिक रूप से लाभ देती है और घुटने की सूजन भी उतर जाती है |

 

घुटने की लपेट के लिए आवश्यक सामग्री: 1 नग 6  इंच चौड़ी व 1.5 मीटर लंबी सूती पतले कपड़े की पट्टी| सूती पतले कपड़े की पटटियो का कपड़ा पतला होना चाहिए | 1 नाग 8 इंच चौड़ी व 1.5 से 1 मीटर लंबी गरम कपड़े की पट्टी/फलालेन का कपड़ा |

घुटने की लपेट कैसे करेगे?: घुटने  की लपेट के लिए सर्वप्रथम सूती कपड़ी की पट्टी का रोल बना ले व इसे 10-15 मिनिट पानी में गला दे | पानी में गला देने के पश्चात इस पट्टी को अच्छी तरह से निचोड़ ले, पट्टी में पर्याप्त नमी रहनी चाहिए  | पट्टी को निचोड़ने के पश्चात, इस पट्टी को घुटने पर चित्र में दिखाये अनुसार  अच्छी तरह से लपेट दे | ध्यान रखे की लपेट अत्यधिक टाईट न हो | इस सूती पट्टी को लपेटने के पश्चात ऊपर से गरम कपड़ा अच्छी तरह से लपेट ले | गरम कपड़ा इस प्रकार से लपेटे की ठंडी सूती पट्टी पूर्ण रूप से ढँक जाये | 

घुटने की लपेट की समयावधि: घुटने की लपेट को 1 घंटे से लेकर 1.30 घंटे के लिए भी रख सकते है | यदि रोगी को इस समयवधि के पूर्व अच्छा नही लगे तो पट्टी को समय के पूर्व भी खोला जा सकता है | इस लपेट को शरीर के किसी भी जोड़ या अंग पर किया जा सकता है |

 

रात को चलाने वाली खांसी से मुक्ति दिलाये:पैरों की लपेट

 

पैरों की लपेट: पैरों की लपेट प्राकृतिक चिकित्सा का चमत्कार देने वाला प्रयोग है | पैरों की लपेट के प्रयोग से गले व फैफड़े संबधित रोगो में चमत्कारिक लाभ प्राप्त होता है | जब रात को खांसी परेशान करे नींद न आए, जब सिर दर्द हो, लगातार विचार चले नींद न आए ऐसी अवस्था में पैरों की लपेट चमत्कारिक लाभ देती है |

 

पैरों की लपेट के लिए आवश्यक सामग्री: २ नग 6  इंच चौड़ी व 1.5 मीटर लंबी सूती पतले कपड़े की पट्टी| सूती पतले कपड़े की पटटियो का कपड़ा पतला होना चाहिए | २ नाग 8 इंच चौड़ी व 1.5 से 1 मीटर लंबी गरम कपड़े की पट्टी/फलालेन का कपड़ा |

पैरों की लपेट कैसे करेगे?: पैरों  की लपेट के लिए सर्वप्रथम सूती कपड़ी की पट्टी का रोल बना ले व इसे 10-15 मिनिट पानी में गला दे | पानी में गला देने के पश्चात इस पट्टी को अच्छी तरह से निचोड़ ले, पट्टी में पर्याप्त नमी रहनी चाहिए  | पट्टी को निचोड़ने के पश्चात, इस पट्टी को पिंडली से लेकर घुटने तक अच्छी तरह से चित्र में दिखाये अनुसार अच्छी तरह से लपेट दे | ध्यान रखे की लपेट अत्यधिक टाईट न हो | इस सूती पट्टी को लपेटने के पश्चात ऊपर से गरम कपड़ा अच्छी तरह से लपेट ले | गरम कपड़ा इस प्रकार से लपेटे की ठंडी सूती पट्टी पूर्ण रूप से ढँक जाये |  यदि ऐसी अवस्था में रोगी को अत्यधिक ठंडक का अहसास हो तो गरम पानी की थैली से गरम कपड़े के ऊपर धीमें-धीमें हल्का सेक कर ले |   गरम प्रयोग पर्याप्त समय के लिए ही किया जाना चाहिए |  

पैरों की लपेट की समयावधि: छाती की लपेट को 1 घंटे से लेकर 1.30 घंटे के लिए भी रख सकते है | यदि रोगी को इस समयवधि के पूर्व अच्छा नही लगे तो पट्टी को समय के पूर्व भी खोला जा सकता है |

पैरों की लपेट का वैज्ञानिक प्रभाव : जब हम किसी रोगी को पैरों की लपेट करते है तो रक्त का संचालन पैरो की और होने लगता है | क्योकि जब व्यक्ति को खांसी चलती है, ह्रदय की धड़कन तेज हो जाती है या अत्यधिक रक्त संचार की वजह से कोई तकलीफ हो जाती है तो रक्त का प्रवाह पैरो की और होने लगता है और व्यक्ति को तुरंत आराम मिल जाता है |
जब भी बुजुर्गो को खांसी रात में परेशान करे तो उक्त पैरो की लपेट से चमत्कारिक लाभ होता है |  इसी प्रकार जब सिरदर्द होता है तो भी इस लपेट से आराम मिलता है | जब महिलाओ को मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्त स्त्राव होता है तो ऐसी परिस्थिति में पैरों की लपेट से आराम मिलता है |

पैरों में वेरिकोज वेन की समस्या में भी इस पट्टी के प्रयोग से पर्याप्त आराम मिलता है | इसी के साथ चर्म रोग होने पर इस पट्टी के प्रयोग से चमत्कारिक लाभ मिलता है |

 

 

 

पीलिया रोग में होने वाली खुजली में चादर लपेट से चमत्कारिक लाभ प्राप्त होता है । पुराने मलेरिया में भी लाभ होता है । मोटापा में भी प्राकृतिक चिकित्सा के अनमोल प्रयोग चादर लपेट से लाभ प्राप्त होता है । यदि इस प्रयोग को करने के पूर्व ऐनिमा ले लिया जाय तो शुध्दिकरण के अतिरिक्त लाभ मिल जाते है ।

 

गरम कपड़े को हर प्रयोग के बाद धोने की आवश्यकता नही है | गरम कपड़े व कंबल को 4-5 बार प्रयोग में आने के बाद धोया जा सकता है |               

 

 

कटि स्नान: पेट रोगों में चमत्कारिक लाभ

कटि स्नान भी प्राकृतिक चिकित्सा का अनमोल प्रयोग है । कटि स्नान के प्रयोग का प्रादुर्भाव हमारी पुरातन संस्कृति के माध्यम से ही हुआ है । पुरातन काल में हमारे पुर्वज नदी में कमर तक पानी में खडे होकर सूर्य देवता को जल चढाते थे । यही प्रयोग प्राकृतिक चिकित्सा में कटि स्नान के  नाम से जाना जाता है । कटि प्रदेश तक अर्थात पेडु प्रदेश(नाभि के नीचे का भाग) इस पर जल के नियमित प्रयोग से आंतों में चिपका हुआ मल ढीला होता है, आंतों की अनावश्यक गर्मी कम होती है । इस प्रकार इस प्रयोग को करने से शरीर की आंतों की क्रियाशीलता में चमत्कारिक रुप से परिवर्तन आता है ।

कटि स्नान के लिये आवश्यक सामग्री : कटि स्नान के लिये लोहे का बना हुआ चंद्राकार टब आता है । उसका प्रयोग किया जा सकता है । इसके साथ ही एक स्टुल की आवश्यकता होती है ।

कटि स्नान के टब में पर्याप्त पानी को भर ले । पानी इतना भरा हुआ होना चाहिए की नाभि के नीचे का पुरा क्षेत्र पानी में डुब जाये ।पानी में भरे हुए टब मैं बैठना होता है और पैरों को बाहर की और किसी पटिये पर रखना होता है । टब में इस प्रकार से बैठना होता है कि कटि प्रदेश अर्थात पेढु के निचे वाला भाग पानी के सम्पर्क  में रहे । इस अवस्था में नियमित रुप से पेडु को निरंतर नैपकीन से रगडना होता है । इस प्रक्रिया को कटि स्नान या हिप बाथ भी कहते है ।

गर्म-ठंडा कटि स्नान

गर्म ठंडा कटि स्नान प्राकृतिक चिकित्सा का एक अनमोल प्रयोग है । गर्म ठंडा कटि स्नान के नियमित प्रयोग प्रजनन अंग सम्बधित रोग व कटि प्रदेश (कमर के  निचले अंगों के रोगों) के रोगों में चमत्कारिक लाभ प्राप्त होता है । मासिक धर्म सम्बधित रोगों में गर्म-ठंडा कटि स्नान चमत्कारिक लाभ देता है ।

आवश्यक सामग्री: कटि स्नान के दो टब व एक छोटा स्टूल ।

आवश्यक सावधानी: गर्म-ठंडा कटि स्नान का प्रयोग करते समय ध्यान रखे की टब में पानी अत्यधिक गर्म न हो ।

वस्ति प्रदेश की लपेट : वस्ति लपेट कब्ज, मासिक धर्म सम्बंधित तकलीफों, अंडकोश का लटक जाना, पुरानी आंव, श्वेत प्रदर, गर्भाशय की सूजन,  व अन्य रोगों के आशातीत परिणाम देती है ।

विधि: एक सूती पतला कपडा गीला कर जैसे हम कमर पर टावेल लपेटते है वैसा लपेट ले । इस गीले कपडे पर गर्म कपडा अच्छी तरह से लपेटने से वस्ति लपेट का प्रयोग हो जाता है । ध्यान रखे सूती कपडा गीला करने के बाद अच्छी तरह से निचोड ले । जब आप इस लपेट पर गर्म कपडा लपेटते है तो गर्म कपडा इस प्रकार से लपेटे की सूती कपडा अच्छी तरह से ढंक जाये । यदि रोगी के शरीर में ठंडक है तो ऐसी स्थिति में गर्म कपडे पर गर्म पानी की थैली से सेक कर अंदर की पट्टी का तापमान बढाना चाहिए, तब ही यथोचित्त लाभ प्राप्त होगा । जब  भी पट्टी को गर्म करने का प्रयोग किया जाता है तो ध्यान रखे प्रजनन अंग को गर्मी से बचाना चाहिए ।

टी लपेट: टी लपेट प्राकृतिक चिकित्सा का बडा ही अनुभूत प्रयोग है । यह प्रयोग दिखने में बहुत ही साधारण है, किंतु इस से अनेक रोगों में चमत्कारिक लाभ प्राप्त होता है । टी लपेट के माध्यम से प्रोस्टेट ग्लेंड, अंड कोष का एग्जिमा, श्वेत प्रदर, मासिक रोग सम्बधित रोग, हाईड्रोसिल व अन्य रोगों में टी लपेट से चमत्कारिक लाभ प्राप्त होता है ।

विधि:एक छोटी से तोलियाँ को भिगोकर उसे अच्छे से निचोड ले, व प्रजनन अंग को इस तोलिये से ढंक दे व उपर से गर्म कपडे की तीन तह को लगा दे  व उपर से जांधियाँ पहन ले । इस प्रकार से टी लपेट प्रयोग हो जायेगा । इस प्रयोग को 1 घंटे के लिये करना चाहिए । इस प्रयोग को सप्ताह में 2-3 बार के लिये अवश्य करना चाहिए ।

  प्राकृतिक  चिकित्सा में गर्म ठंडे पानी के प्रयोग का वैज्ञानिक आधार

प्राकृतिक चिकित्सा बहुत ही अनमोल चिकित्सा पध्दति है । इसमें मौसम व शरीर की प्रकृति व रोग के अनुसार गर्म व ठंडे प्रयोगों को किया जाता है । शरीर को कभी गर्म जल के प्रयोग की आवश्यकता होती है तो कभी ठंडे जल की पट्टी या मिट्टी की पुटलिस का प्रयोग करना होता है ।

हमें ठंडे जल का प्रयोग कब करना है, गर्म जल का प्रयोग कब करना है इसकी चिकित्सकीय जानकारी अवश्य होनी चाहिए, तब ही हम जल चिकित्सा से सर्वागिण लाभ ले पायेगें ।

गर्म जल के प्रयोग से जो चिकित्सकीय लाभ प्राप्त होते है वही लाभ शीतल जल के प्रयोग से भी हो जाते है । गर्म जल का प्रयोग करने से रक्त अपने स्थान से चला जाता है । रक्त अपने मूल स्थान पर जाकर शरीर के गठन के लिये आवश्यक सामग्री और रोगों से लडने के लिये श्वेत कणों को ले जाता है । रक्त जब त्वचा पर फैल जाता है तो वह रोम कूपों के माध्यम से शरीर की गंदगी को शरीर के बाहर कर देता है । इस प्रकार वह आंतरिक अंगों में रक्त की अधिकता व दर्द को कुछ ही क्षणों में दूर कर देता है । इसी वजह से गर्म जल के प्रयोग से त्वरित लाभ प्राप्त हो जाता है व व्यक्ति रोग से मुक्त हो जाता है ।

किंतु वही लाभ ठंडे पानी के प्रयोग से भी गर्म पानी के प्रयोग जैसा लाभ प्राप्त हो जाता है ।  जब हम शरीर के विशेष अंग पर ठंडे पानी का प्रयोग करते है । ठंडे पानी का प्रयोग करते है तो त्वचा की सतह का रक्त शरीर के भीतर जाता है और मस्तिष्क तुरंत स्नायु संस्थान को संदेश देता है कि शरीर के अंग को रक्त पहुचाया जाय,  इस प्रकार शरीर के अंग को पुन: गर्म करने के लिये दौडा चला आता है । जब त्वचा पर अवस्थित रक्त वाहिनियाँ फैल जाती है और शरीर में अवस्थित विष प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से गैस व पसीने के रुप में शरीर से निष्कासित हो जाता है ।  इसी लिये ठंडे प्रयोग से निस्तेज त्वचा पर पर्याप्त रक्त का प्रवाह होने त्वचा पर लालिमा आ जाती है । उक्त प्रक्रिया लम्बें समय तक जारी रहती है । शीतल जल का प्रयोग भी सिमित समय अर्थात सिमित अवधि के लिये करना चाहिए ।

इसलिये जिस प्रकार गर्म पानी शरीर को स्वास्थ्य लाभ देता है वही लाभ ठंडे पानी के प्रयोग से भी होता है ।  आवश्यकता है केवल शरीर की प्रकृति, वातावरण व रोग की अवस्था के अनुसार ठंडे या गर्म पानी के प्रयोग का चुनाव करे ताकि रोगी को चिकित्सा से लाभ भी प्राप्त हो और उसे कोई कष्ट न हो ।

यहाँ एक बात और गौर करने लायक है की गर्म पानी का प्रयोग तुरंत लाभ तो देता है, किंतु कई बार गर्म पानी के प्रयोग से नुकसान होने की संभावना हो सकती है, किंतु ठंडे पानी के प्रयोग से कभी भी कोई हानि नही हो सकती है । क्योकि गर्म पानी का प्रयोग कभी भी ह्रदय, आंख, प्रजनन अंग व अन्य नाजुक अंगों पर नही किया जा सकता है । इसके साथ ही जब भी गर्म पानी का प्रयोग किया जाता है तो अविलम्ब ठंडे पानी का प्रयोग कर सम्बधित अंग को सामान्य तापमान का कर लेना चाहिए, कभी भी लम्बें समय तक शरीर को गर्म नही होने देना चाहिए । गर्म पानी का प्रयोग बहुत समझदारी से व किसी अनुभवी चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए ।

जब शरीर में अत्यधिक ठंडक व कप कपी रहती है तो ऐसी अवस्था में ठंडे पानी का प्रयोग कदापि नही करना चाहिए ।

सूजन पर कभी भी गर्म पानी का प्रयोग नही करना चाहिए : जब भी शरीर के किसी अंग पर सूजन हो तो गर्म पानी का प्रयोग कभी भी नही करना चाहिए । जब भी सूजन वाले अंग पर गर्म प्रयोग करते है तो सम्बधित अंग पक जाता है और पस पड जाता है । किंतु यदि सूजन पर ठंडी पट्टी का प्रयोग किया जाता है तो ठंडी पट्टी सूजन तो कम करती ही है साथ ही ठंडी पट्टी के सतह की हल्की गर्मी दर्द को दूर करती है ।

अत्यधिक सूजन होने पर 5-6 घंटे के लिये ठंडे पानी की पट्टी का प्रयोग कर सकते है । किंतु यदि इतनी अधिक लम्बी अवधि के लिये करते है तो बीच में कुछ मिनिटों के लिये गर्म प्रयोग किया जाना चाहिए ।

वाष्प स्नान प्रयोग के बाद ठंडा प्रयोग अवश्य करे : जब भी वाष्प स्नान करते है तो शरीर पर्याप्त गर्म हो जाता है और ऐसी अवस्था में शीतल जल से स्नांन करना आवश्यक होता है । क्योकि जब भी शरीर के किसी भी अंग पर गर्म प्रयोग करते है तो कभी भी शरीर के किसी भी अंग को गर्म  नही छोडते है । ध्यान रखे कभी भी शरीर का कोई अंग गर्म नही रहेगा, उसे  शीतलता प्रदान करना होगी ।

Share to...