
कम मात्रा में गलत विधि से जल (Water) का सेवन अनेक गम्भीर रोगों को आमन्त्रण देता है? How to Drink Water
PANI PEENE KE FAYADE-lifestyleexpert125
Consumption of water in the morning way in small amounts invites many serious diseases? by Dr.Jagdish Joshi, Life Style Expert 125
‘यद् पिण्डे तत्र ब्रम्हाडे’ के अनुसार शरीर और ब्रम्हांड की रचना समान तत्वों से हुई है, जिन्हें पंच महाभूत कहा जाता है। संसार में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व जल है व मनुष्य शरीर में पाया जाने वाला तत्व भी जल ही है |
हमारा शरीर पंच तत्व से बना है (Our body is made up of five elements-How to drink water) : हमारे शरीर में पाये जाने वाले पंच तत्व हैं- वायु, अग्नि, जल (Water) , पृथ्वी और आकाश। इनमें से भी दो तत्व जल (Water) और वायु ऐसे तत्व हैं, जिनके बिना हमारा जीवित रहना संभव नहीं है। सर्वाधिक महत्त्व का तत्व वायु है और वायु के बाद जल (Water) का स्थान आता है। आज हम जल (Water) तत्व के बारे में जानकारी प्राप्त करेगे |
जल कौन-कौन से तत्वों से मिलकर बना है ? (What is water made of- How to drink water):
जल आक्सीजन व हाईड्रोजन से मिलकर बना है |
जल क्या है? (How to drink water?):
जल जीवनदायी तत्व है, इसके बिना जीवन संभव नहीं है |
जल का रासायानिक नाम क्या है? (How to drink water):
जल का रासायनिक नाम हाईड्रोजन के दो अणु व आक्सीजन के एक अणु से जल बनाता है इसका सूत्र है H2o(components of water) है |
जल (Water) के बिना जीवन संभव नहीं है (How to drink water) :
मनुष्य ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण ब्रम्हांड में जल (Water) तत्व का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। मानव शरीर की उत्पत्ति जिन पंच तत्वों से हुई है, उनमें जल (Water) का महत्वपूर्ण स्थान है। जल (Water) ही संसार में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व जल (Water) ही है। जल (Water) ही मानव जीवन की उत्पत्ति का मुख्य आधार है। जल (Water) के कारण ही मनुष्य में बुध्दि का विकास हुआ है और वह आदि युग से परमाणु युग तक पहुँच पाया है।
जल के 3 प्रमुख स्त्रोत कौन से है? (what are the 3 main sources of water?):
जल हमें तालाब, नदी, टुयुब वेल व अन्य साधनों से प्राप्त होता है |
संसार में कितने प्रकार का जल पाया जाता है? (Types of water in the world):
संसार में पाये जाने वाले जल समुद्र का जल, ग्लेशियर का जल, जमीन के अन्दर का जल, ताजा जल व बारिश का जल ये जल के विभिन्न स्त्रोत है, जिनके माध्यम से हमें जल प्राप्त होता है |
विभिन्न प्रकार के पीने वाले जल (Types of drinking water):
जल केविभिन्न प्रकार है जैसे नल का जल, मिनरल जल, बारिश का जल, ग्लेशियर का जल, शुध्द जल व अल्कलाइन जल होते है |
जल (Water) जीवन दाता है (How to drink water) :
पृथ्वी पर होने वाली अधिकांश विनाशकारी घटनाओं के पीछे जल (Water) ही कारण होता है। इसके विपरीत जब पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति होती है तो जीवों का जीवन जल से ही शुरु होता है। मनुष्य का विकास गर्भाशय के अंदर जल (Water) में ही होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि सृष्टि के निर्माण के लिए ईश्वरीय चेतना शक्ति से क्रमश: आकाश, वायु और अग्नि की उत्पत्ति होने के बाद जल (Water) तत्व की उत्पति हुई है।
जल (Water) प्राण दाता है (How to drink water) :
जिस तरह संसार से वायु समाप्त होने से संसार व जीवन का मूल नष्ट हो जाएगा, उसी तरह संसार से जल समाप्त होने से संसार व जीवन समूल नष्ट हो जाएगा। इस संसार में मौजूद सभी जीवों को जीने के लिए आक्सीजन उपलब्ध रहे, इसके लिए पेड़-पौधों का होना जरूरी है। अब यदि पेड़-पौधों को पंच तत्व में से चार तत्व मिलते रहे पर जल (Water) न मिले तो वे नष्ट हो जाएगें और सभी जीवों का जीवन संकट में आ जाएगा।
संसार में सर्वाधिक मात्रा में जल (Water) है (The highest amount of water in world):
इस भूमण्डल में पृथ्वी का भाग एक चौथाई है और जल (Water) का भाग तीन चौथाई है। मानव शरीर में भी 70 प्रतिशत से भी अधिक जल (Water) है और 30 प्रतिशत में शेष सब हड्डियाँ माँस व अन्य पदार्थ आते हैं। इस अनुपात को देखकर ही जल (Water) की महत्ता और उपयोगिता का पता चल जाता है। हमारे शरीर में जल (Water) तत्व का भाग शेष चार तत्वों से बहुत ज्यादा है, इसलिए शरीर और स्वास्थ की दृष्टि से हमें जल (Water) के विषय में विशेष रूप से सतर्क और सचेष्ट रहना होगा।
वायु और जल (Water) हमें इतनी सहजता व सुलभता से उपलब्ध है कि हम इन तत्वों की उपयोगिता और आवश्यकता पर ध्यान नही देते हैं। आजकल लोग वायु तत्व के प्रति जागरूक हो गए हैं और प्राणायाम के महत्त्व और उससे मिलने वाले लाभों को समझ गए हैं। इस लेख के व्दारा हम जल (Water) के गुणधर्म, सेवन पध्दति और इससे जुड़ी लाभ-हानि पर चर्चा कर रहे हैं। Sheetali Pranayama karne ke fayde
जल (Water) एक ओषधि है (How to drink water) :
यह तो आप सभी जानते समझते हैं कि हमारा जीवन और जीवन का ढ़ंग भौतिकवादी अधिक और अध्यात्मवादी कम हो गया है। कृत्रिम ज्यादा और प्राकृतिक कम हो गया है तथा सुविधा भोगी ज्यादा और नियम-संयम में कम हो गया है। परिणाम स्वरूप हम प्राकृतिक जीवन से दूर होते जा रहे हैं और हमारे जीवन में बनावटी और नकली चीजों ने जगह बना ली है। क्या अन्न, क्या जल (Water), क्या वायु और क्या आकाश सब कुछ अप्राकृतिक और मनचाहे ढ़ंग से प्रयोग में लिया जा रहा है और यह विचार करने की न तो किसी को फुर्सत है, न चिंता है और न जानकारी ही है कि जो कुछ हो रहा है वह ठीक हो रहा है या गलत? ऐसा होना चाहिए या नहीं? यदि ऐसा नहीं होना चाहिए तो फिर कैसा होना चाहिए? ऐसे हालात और माहौल को मद्दे नजर रख कर हमें शरीर और स्वास्थ की दृष्टि से ‘जल (Water) ’ के विषय में सोच विचार करना ही होगा।
पशुओ को प्राण गवाकर जल (Water) प्राप्त होता है (Animal get water after losing their lives) :
हमारा शरीर जिन पंच तत्वों से बना है, उनमें से किसी भी तत्व की कमी या इन तत्वों के बीच असन्तुलन होने से शरीर रोग ग्रस्त होता है। मनुष्य के लिए जल (Water) ही सहज उपलब्धता प्रकृति का एक वरदान है। इसे प्राप्त करने के लिए हमें अपने प्राण संकट में नहीं डालने पड़ते जबकि जंगलों में प्रायः पशु अपनी प्यास बुझाने के लिए जल (Water) के स्त्रोत तक जाते हैं और मगरमच्छ, शेर जैसे पशुओं का शिकार हो अपने प्राण गवा देते हैं।
अनेक रोगों का जन्मदाता जल है (Water is the originator of many diseases):
यह कितने आश्चर्य की बात है कि आसानी से उपलब्ध जल (Water) तत्व के सेवन में हम लापरवाही करते हैं और अकारण ही अनेको रोगों का शिकार हो जाते हैं। ज्यादातर लोग जल (Water) को सही मात्रा में और सही विधि से सेवन नहीं करते हैं। जल (Water) की अत्यधिक कम मात्रा का सेवन करने से व्यक्ति धीरे-धीरे कब्ज, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, साइटिका, चर्मरोग, गठिया, जोड़ों का दर्द जैसे विभिन्न रोग शरीर में घर कर जाते हैं। रोगी होने पर व्यक्ति विभिन्न चिकित्सा पध्दति यों से इलाज तो करवाता है और चिकित्सा में धन भी जल की तरह बहाता है, परन्तु सही विधि और उचित मात्रा में जल अर्थात् जल (Water) का सेवन नहीं करता।
इस लेख में हम जल (Water) तत्व के बारे में आपसे चर्चा कर रहे हैं। बताई गई बातों को ध्यान में रखकर और इन पर अमल करके स्वास्थ लाभ उठाया जा सकता है तथा असमय होने वाले रोगों से बचाव करते हुए अनावश्यक जन व धन हानि से भी बचा जा सकता है।
जल का सही विधि से सेवन करे (Eat water right way):
प्रायः हम रोग का शिकार होने पर जल (Water) का गलत व अनियिमित रूप से प्रयोग करते हैं। इस वजह से लाभ होने के स्थान पर हमें हानि हो जाती है।
जल (Water) का कम सेवन गंभीर रोगों को आमंत्रण (Reduced intake of water invites serious diseases:
जल (Water) के कम मात्रा में सेवन करने से भविष्य में हृदयाघात, लकवा व अनेक गंभीर रोगों के होने की प्रबल संभावना रहती है। कम जल का सेवन करने वाले कब्ज, उच्च रक्तचाप, चर्म रोग, गठिया व अनेक रोगों का शिकार हो जाते है |
जल (Water) का अत्यधिक सेवन स्वास्थ के लिए गंभीर खतरा (Excess water consumption poses a serious threat to health) : किन्तु जो अत्यधिक जल (Water) का सेवन करते है वे भी जल (Water) के अधिक सेवन करने की वजह से अनेक रोगों के शिकार हो जाते है | कहते है ना अति सर्वत्र वर्जयेत, अर्थात किसी भी चीज की अति बुरी होती है |
जल (Water) के बिना जीवन संभव नहीं (Life is not possible without water) :
जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वैज्ञानिक भी अंतरिक्ष में किसी ग्रह पर जल (Water) को खोजते हैं, क्योंकि यदि जल (Water) होने के सबूत मिल जाए तो उस ग्रह पर जीवन होने की संभावना हो सकती है। जल (Water) हमारे शारीरिक स्वास्थ की नींव मजबूत करता है तथा इसी की सहायता से भोजन व्दारा ग्रहण किए विभिन्न पोषक तत्व अपने गंतव्य तक पहुँच कर शरीर को पोषण प्रदान करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जल (Water) जीवन का आधार है। जल (Water) से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्यों पर हम चर्चा कर रहे हैं।
जल (Water) के चिकित्सकीय गुण(Medicinal Property of Water):
हमारे देश की प्राचीन चिकित्सा शास्त्र आयुर्वेद के अनुसार जल (Water) श्रम से उत्पन्न थकावट तथा ग्लानि दूर करने वाला, बलवर्धक , स्फूर्तिदायक, तृप्तिकारक, हृदय को प्रिय, नित्य हितकारी, शीतल, हल्का, स्वच्छ, रस का कारण रूप, अमृत के समान जीवन की रक्षा करने वाला है। जल (Water) के सेवन से बेहोशी, प्यास, तन्द्रा, कब्ज, निद्रा और अजीर्ण दूर होते हैं। शरीर का तापमान नियंत्रित रखना, त्वचा (Skin) की क्रियाशीलता को बनाये रखना, रक्त की गति को बढ़ाना, शरीर की नाड़ियों को उत्तेजित रखना, मांसपेशियों को संकुचित करना, पोषण शक्ति बढ़ाना, श्वास क्रिया को सामान्य बनाये रखना त्वचा (Skin) के पास के रक्त कोषों को अल्प समय के लिए संकुचित करना आदि कार्य भी जल (Water) करता है। आयुर्वेद ग्रन्थ भावप्रकाश निघण्टु में लिखा है-
अर्थात् जल (Water) प्राणियों का जीवन है और सम्पूर्ण जगत जल (Water) से भरा हुआ है, इसलिए कुछ प्रकार के रोगों में जल (Water) के सेवन का प्रतिबंधित होने पर भी जल (Water) का सर्वथा त्याग करना संभव नहीं होता।
जल (Water) की महत्ता इसी से सिध्द हो जाती है कि तीव्र प्यास लगने पर यदि जल (Water) न मिले तो प्राण व्याकुल हो जाते हैं। एक बार अन्न के बिना व्यक्ति जी भी सकता है, तत्काल मन नहीं जाता, पर जल के बिना जीना मुश्कील हो जाता है, क्योंकि ‘पानीयं प्राणिनां प्राणा विष्वमेह हि तन्मयम्’ (मदनपाल निघण्टु) के अनुसार जल प्राणियों का प्राण है। ‘तृषितो मोहमायाति मोहा, प्राणान्वि मुंचति’ (हारीत) के अनुसार तीव्र प्यास से बेहोशी हो सकती है और बेहोशी, से जान जा सकती है, यदि प्सास बुझाई न जाए। यही वजह है कि बेहोश आदमी के चेहरे पर, जल (Water) के सिर्फ छींटे मारने से उसकी बेहोशी दूर हो जाती है।
जल (Water) के कार्य (How to drink water) :
शरीर के तापमान को बनाये रखने के लिए जल (Water) की आवश्यकता होती है। रक्त हमारी त्वचा (Skin) पर अवस्थित रक्त वाहिनियों के माध्यम से प्रसारित होता रहता है। यह रक्त शीतल होकर शरीर के आंतरिक भागों में संचारित होता है। पसीने के रूप में जल (Water) त्वचा (Skin) से उड़ कर वातावरण में चला जाता है और इस तरह शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है। रक्त के प्लाज्मा में 90% जल (Water) होता है। यह प्लाज्मा रक्त के उचित स्तर को बनाये रखता है। रोग प्रतिरोधक तंत्र (Immune System) व्दारा निर्मित एन्टीबाडीज (Anti-bodies) को सम्पूर्ण शरीर में प्रसारित करने के लिए भी जल (Water) की आवश्यकता होती है। यह हमारे व्दारा ग्रहण किए गए आहार से प्राप्त पोषक तत्वों को उनके गंतव्य तक पहुँचाने का कार्य भी करता है। पूरे शरीर की कोशिकाओं को आक्सीजन की आपूर्ति करने में जल की आवश्यकता होती है।
आहार के पाचन में मदद करने के साथ-साथ शरीर के आंतरिक अंगों की सफाई करना, विजातीय द्रव्यों को शरीर से करना तथा चयापचय से उत्पन्न अनुपयोगी पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने का काम भी जल (Water) ही करता है। यह नाक (Nose), कान (Ear), आँख (Eyes), गला (Throat), आँतों (Intestines) इत्यादि की श्लेष्मिक कला की नमी को बनाये रखता है। जल शरीर के पाचक अंगों (Digestive System) के संचालन के लिए श्रेष्ठ द्रव्य है।
प्रदूषित जल (Water pollution):
मनुष्य ने जल को अत्यधिक प्रदूषित कर दिया है | पृथ्वी पर मात्र 2.5% जल है | पृथ्वी पर 97.5% प्रदूषित जल है | सोचिये यदि हम जल को इतना प्रदूषित करते रहे तो हमें शुध्द जल कैसे मिलेगा?
हमें जल के बारे में चिंता क्यों करनी चाहिए? (How to drink water):
हमने देखा की पृथ्वी पर सर्वाधिक मात्रा में जल होते हुए भी मात्र 2.5% जल शुध्द जल है तो हमें प्राणियों का जीवन सुरक्षित रखना है तो पानी तो बचाना ही होगा |
यहाँ हम जल के सेवन की सही विधि के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करेगे, हमें जल का सेवन कैसे करना है कितनी मात्रा में करना है इसके बारे में जानकारी प्राप्त करेगे |
24 घंटे में 10-12 ग्लास जल का सेवन करना चाहिए अर्थात 2 से लेकर 3 लीटर जल का सेवन करना चाहिए |
जिनके शरीर की प्रकृति गर्म है अर्थात जो पित्त के शिकार रहते है उन्हें गर्म जल का सेवन (hot water intake) कदापि नहीं करना चाहिए | ऐसी प्रकृति के व्यक्तियों के लिए गर्म जल का सेवन स्वास्थ्य को गंभीर नुक़सान पहुचा सकता है |
• भोजन के एक घंटे पहले व एक घंटा बाद जल पीया जा सकता है |
• जल को कभी भी जल्दी-जल्दी सेवन नहीं पीना चाहिए |
• धुप से आकर कभी भी तुरंत ठंडा जल नहीं पीना चाहिए |
• जल को बैठकर पीना चाहिए |
• यौन सम्बन्ध के तुरंत बाद जल नहीं पीना चाहिए |
• तेज धूप से आकार कभी तुरंत जल न पीये |
आगामी लेख में हम जल के बारे में अनेक अनमोल जानकारी के बारे में जानकारी प्राप्त करेगे | ताकि हम अपने परिवार, समाज, देश व विश्व को स्वस्थ व निरोगी बना सके |
समाज से अपील (Appeal to Society) :
हमें पानी का उपयोग मितव्यता से करना चाहिए | क्योकि पृथ्वी पर मात्र 2.5% जल ही मौजूद है | इसलिए पानी का समझदारी से उपयोग करना श्रेयस्कर है ताकि हम आगामी पीढी को जल उपहार में दे सके |
https://en.wikipedia.org/wiki/Water
https://en.wikipedia.org/wiki/Properties_of_water
https://simple.wikipedia.org/wiki/Water
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