Fire Element

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सूर्य स्नान से पाये चमत्कारिक लाभ

पृथ्वी व अंतरिक्ष में जितने भी ग्रह-उपग्रह है वे सभी सूर्य से उर्जा प्राप्त करते है । इनकी व इन पर निवास करने वाले  समस्त प्राणियों की उर्जा का स्त्रोत सूर्य है । इन सभी की जीवन का आधार सूर्य है । सूर्य के बिना जीवन की  कल्पना भी नही की जा सकती है । जिवित प्राणी ही नही निर्जिव व प्रकृति भी सूर्य की रोशनी से उर्जा पाते है ।

सूर्य की रोशनी जिस पर भी पडती है सूर्य की किरणों का उन पर श्रेष्ठ प्रभाव पडता है । सूर्य की किरणों के बिना अन्न का उत्पादन भी नही हो सकता है । पेड, पोधे, सब्जियाँ, अनाज सूर्य की किरणों से जो उर्जा प्राप्त करते है उन्हे समस्त प्राणीजन आहार के रुप में सेवन कर उर्जा व शक्ति प्राप्त करते है ।  जिन दुधारु पशुओं को सूर्य की किरणे प्राप्त नही होती है उन दुधारु पशुओं के दुध में विटामिन डी की कमी हो जाती  है ।

सूर्य की किरणें जब हमारी त्वचा पर पडती है तब यह किरण त्वचा के माध्यम से शरीर की गहराई में जाती है और वहाँ रक्त के माध्यम से अवशोषित होती है । इस वजह से समस्त कोशिकाओं में उर्जा का संचार होता है और इस कारण शरीर की चयापचय प्रक्रिया सुचारु होती है जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है ।

जब आप नियमित रुप से प्रातकाल: सूर्य की किरणों में कुछ समय रहते है तो रक्त के लाल कणिकाओं की संख्या में वृध्दि होती है । इसके साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने वाली सफेद रक्त कणिकाओं की संख्या में वृध्दि होती है । प्रातकाल: नियमित रुप से सूर्य किरणों में खुले शरीर रहने पर शरीर के रक्त में अवस्थित दूषित तत्वों का नाश होता है ।  नियमित रुप से सूर्य किरणों का लाभ लेने से शरीर के सम्पूर्ण आंतरिक अंगों की कार्यक्षमता में वृध्दि होती है । सूर्य किरण के माध्यम से शरीर की समस्त कोशिकाओं व अंगों की कार्यक्षमता में वृध्दि होती है । इसके साथ ही सूर्य किरणों की वजह से मन की नकारात्मकता दूर होती है और मन में प्रसन्न्नता का संचार होता है ।

शरीर की खुली त्वचा पर सूर्य किरणों के स्पर्श से शरीर के लिये आवश्यक विटामिन डी की आपूर्ति हो जाती है । सूर्य स्नान करने से शरीर में केल्शियम, लोहा व फास्फोरस की मात्रा में चमत्कारिक रुप से वृध्दि होती है ।

सूर्य की किरणों में सर्वाधिक आवश्यक तत्व अल्ट्रा वायलेट किरणें होती है । प्रदूषण, धुँवा, बादल की वजह से शहरी वातावरण में अल्ट्रा वायलेट किरणों का लाभ नही मिल पाता है । वही गाँवों व शुध्द वातावरण में हमें सूर्य से पर्याप्त मात्रा में अल्ट्रावायलेट किरणें प्राप्त होती है । धरती की समुद्र तल से जितनी उँचाई होगी उतनी अधिक मात्रा में हमें अल्ट्रा वायलेट किरणों की प्राप्ति होगी । नदी व समुद्र के किनारे सामान्य वातावरण की तुलना में दुगनी अल्ट्रा वायलेट किरणें प्राप्त होती है ।

गहरे व काले रंग के वस्त्रों को पहनने से यथोचित अल्ट्रा वायलेट किरणों की मात्रा हमारे शरीर को प्राप्त नही होती है । इसलिये जहाँ तक हो सके खुले बदन सूर्य स्नान करना चाहिए । यदि वस्त्रों को पहनना अनिवार्य होत तो पतले व छिर छिरे कपडों को पहनकर सूर्य स्नान किया जा सकता है ।

सूर्य स्नान लेने की विधि: शरीर को कभी भी सम्पूर्ण रुप से सूर्य स्नान नही करवाना चाहिए । सबसे पहले कुछ दिनों तक पैरों को सूर्य स्नान, कुछ दिनों बाद दोनों बाहों को सूर्य स्नान, इसके बाद गले को सूर्य स्नान, इस प्रकार शरीर की सूर्य स्नान करने की सहन शीलता बढती जायेगी और फिर आप सम्पूर्ण शरीर को सूर्य स्नान करवा सकते है । वैसे हम सामान्य रुप से देखे तो शीत ऋतु में शरीर को शीत से बचाए हुए खुले बदन भी अधिक समय तक सूर्य स्नान लिया जा सकता है । गर्मी के मौसम में सुबह-सुबह हल्के छिद्र वाले सूती वस्त्रों को पहनकर टहलने जाया जा सकता है । इस प्रकार से शरीर का व्यायाम भी हो जाता है और शरीर को पर्याप्त सूर्य की किरणों के व्दारा अल्ट्रा वायलेट किरणों का लाभ भी मिल जाता है ।

आवश्यक सावधानी: सूर्य स्नान लेते समय अपनी आंखों व सिर को अत्यधिक गर्मी से बचाना चाहिए । जब भी सूर्य स्नान ले आंखों पर गहरे लाल या हरे रंग का चश्मा लगाये व सिर पर ठंडें पानी से गीला किया हुआ नैपकीन रखे, इस प्रकार आप सूर्य स्नान से सम्पूर्ण लाभ प्राप्त कर लेते है ।

आंशिक वाष्प स्नान: जब सम्पूर्ण शरीर को वाष्प स्नान देने की आवश्यकता नही होती है और किसी अंग विशेष पर वाष्प स्नान देना होता है तो उक्त प्रयोग आंशिक वाष्प स्नान कहलाता है ।  आंशिक वाष्प स्नान सेक की ही सुधारात्मक प्रक्रिया है । जिस जिस अंग पर हम गर्म प्रयोग कर सकते है वहाँ-वहाँ आंशिक वाष्प स्नान कराया जा सकता है ।

आंशिक वाष्प स्नान के लिये आवश्यक सामग्री: आंशिक वाष्प स्नान के लिये एक तपेली व गैस बर्नर की आवश्यकता होती है ।

विधि: एक 2 लीटर पानी की क्षमता वाली तपेली को आधा पानी से भर ले, इस तपेली को गैस के बर्नर पर रख दे । जब वाष्प निकलने लगे तो सम्बधित अंग को भाप के सम्पर्क में ले जाये और उस अंग को कम्बल से ढंक दे ।

आंशिक वाष्प स्नान की एक अन्य व्यवहारिक विधि: आंशिक वाष्प स्नान हेतु एक अन्य बडी सरल विधि है जिसे हम आसानी से घर पर कर सकते है । प्राय: हमारे घरों में कुकर तो होता ही है ।कुकर को 1/3 पानी से भर कर गैस पर रख दे व  इस कुकर के नोझल पर 1.5 मीटर लचीला पाईप लगा दे । इस पाईप के अंतिम सिरे पर कपडा लगा दे ताकि भाप तेजी से आकर शरीर को न जलाये । इस प्रकार भाप निकलने पर सम्बधित अंग पर हल्का हल्का सेक करे । ध्यान रखे ऐसा करते समय अपने एक हाथ में ठंडे पानी से गीला किया हुआ तोलिया रखे, ताकि यदि कभी गलती से भाप से सम्बंधित अंग पर जलन होने लगे तो उसे तुरंत शांत किया जा सके । ध्यान रखे उक्त प्रयोग बहुत सावधानी व ध्यान से किया जाना चाहिए ताकि शरीर की त्वचा न जल जाये ।

उण्ण पाद स्नान: उण्ण पाद स्नान अर्थात हाट फुट बाथ प्राकृतिक चिकित्सा का  बडा अनमोल व प्रभावी प्रयोग है । इस प्रयोग के माध्यम से अनेक चमत्कारिक व त्वरित लाभ प्राप्त होते है । वाष्प स्नान से जो लाभ प्राप्त होते है वही लाभ उण्ण पाद स्नान से होते है । उण्ण पाद स्नान में वाष्प स्नान के समान रोम छिद्र खुल जाते है और शरीर की गंदगी पसीने के माध्यम से शरीर के बाहर हो जाती है ।

उण्ण पाद स्नान के लिये आवश्यक सामग्री : दो बडी बाल्टियाँ, एक स्टुल, एक बडा कम्बल, एक नैपकीन व गर्म व ठंडा पानी ।

उण्ण पाद स्नान की विधि: रोगी को एक स्टुल पर बिठा दे । चित्र में दिखाये अनुसार रोगी को गर्दन तक कम्बल से लपेट दे । रोगी के सिर पर ठंडे पानी से गीला किया हुआ नैपकीन रख दे ।  अब रोगी  को सहन करने योग्य पानी की बाल्टी में दोनों पैरों को  रख दे । इस अवस्था में बाल्टी व रोगी की गर्दन तक का भाग कम्बल में लपेटा हुआ रहेगा । इस प्रकार गर्म पानी की बाल्टी की भाप बाहर नही जा पायेगी । पानी के तापमान को निरंतर बनाये रखने के लिये निरन्तर सावधानी से गर्म पानी बाल्टी में थोडा-थोडा बढाते जाये ताकि पानी का तापमान बना रहे व रोगी को उण्ण पाद स्नान का लाभ मिलता रहे ।  गर्म पानी डालते समय ध्यान रखना चाहिए कि गर्म पानी रोगी के पैरों को न जला दे । इसलिये पानी डालते समय अत्यंत सावधानी से डालना चाहिए ।

वाष्प स्नान

वाष्प स्नान प्राकृतिक चिकित्सा का बहुत ही अनमोल व चमत्कारिक परिणाम देने वाला प्रयोग  है । प्राय: ठंड व बारिश के मौसम में शरीर से पसीना नही निकल पाता है । इस वजह से शरीर की त्वचा अपनी पूर्ण कार्यक्षमता से कार्य नही कर पाती है और इस वजह से व्यक्ति को अनेक स्वास्थ्य की समस्याओं का सामना करना पडता है । ऐसी अवस्था में शरीर विजातीय द्रव्यों (गंदगी) के बोझ से रोगी हो जाता है । ऐसी अवस्था में वाष्प स्नान एक अनमोल प्रयोग है । इस प्रयोग के माध्यम से त्वचा पसीना निकलती है और व्यक्ति विजातीय द्रव्यों के माध्यम से अनेक रोगों से सुरक्षित हो जाता है ।  वाष्प स्नान को हम बिना परिश्रम के पसीना निकालने की प्रक्रिया भी कह सकते है ।

वाष्प स्नान के लिये आवश्यक सामग्री : वाष्प स्नान के लिये वाष्प पेटी होती है । प्राय: प्राकृतिक चिकित्सा केंद्रों पर वाष्प स्नान हेतु साधन उपलब्ध रहते है । किंतु यदि आप घर पर ही वाष्प स्नान लेना चाहते है तो आसानी से बहुत कम साधनों से घर पर भी वाष्प स्नान ले सकते है ।

आवश्यक सामग्री: एक रबर की लचीली 2-3 मीटर लम्बी नली, एक कुकर, एक कम्बल व छोटा स्टुल ।

वाष्प स्नान की विधि: कुकर को एक तिहाई पानी भरकर गैस के बर्नर पर रख दे । कुकर के नोझल पर रबर की नली को लगा दे । जब कुकर में वाष्प पैदा होने लगे तब स्टुल पर व्यक्ति को बैठा दे । व्यक्ति को बैठाने के बाद शरीर को पूर्ण रुप से कम्बल से ढंक दे । अब बाल्टी में रबर की नली के अंतिम सिरे को रख दे । ध्यान रखे की व्यक्ति के सिर पर ठंडे पानी से गीली की हुई पट्टी रख दे । गर्मी के मौसम में 6-8 मिनिट के लिये शीत ऋतु में 15-45 मिनिट तक के लिये वाष्प स्नान ले सकते है । जब जिसे व्यक्ति को वाष्प स्नान दिया जा रहा है के शरीर की स्थिति के अनुसार ही इसकी समयावधि निर्धारित करना चाहिए । यदि व्यक्ति का जी घबराये तुरंत वाष्प स्नान को बंद कर देना चाहिए ।

वाष्प स्नान की समाप्ति के बाद ठंडे पानी से तुरंत स्नान कर लेना चाहिए । वाष्प स्नान व स्नान के मध्य शरीर को ठंडी हवा नही लगना चाहिए ।

वाष्प स्नान किन्हे नही करना चाहिए : जब व्यक्ति का रक्तचाप बढा हुआ हो, व्यक्ति को अत्यधिक ऐसिडिटी हो रही हो, शरीर का तापमान बढा हुआ हो व रोग विशेष की अवस्था में कभी भी चिकित्सक की सलाह के बिना वाष्प स्नान नही लेना चाहिए ।

वायु स्नान व स्वास्थ्य

संसार में सर्वाधिक बीमार कोई प्राणी है तो वह मनुष्य है । क्योकि मनुष्य हमेंशा आप्राकृतिक वातावरण में रहता है। इसके ठीक विपरीत अन्य समस्त प्राणी प्रकृति की गोद में रहते है । हम जितना प्रकृति से दूर रहते है उतना ही हम बीमार रहते है । हम प्रकृति के पास जाने का प्रयास नही करते है । जबकि प्रकृति हमारे सबसे नजदीक है । हम सन राईज व सन सेट देखने बाहर जाते है, किंतु रोज होने वाले सन सेट व सन राईज को देखने का समय नही है । क्या हम कभी अपने मकान की छत पर सुबह-सुबह या रात्री को जाते है, हमें अहसास है कि प्रकृति हमें कितनी ठंडी हवा देती है । क्या हम सुबह उठकर जल्दी टहलने जाते है ताकि हमारी प्रकृति से सम्पर्क हो सके? नही जब प्रकृति जागती है तब हम बिस्तर पर सोये रहते है, तो हमारा प्रकृति से कैसे सम्पर्क होगा । जब हम बंद कमरे में लम्बें समय रहते है तो सर्वप्रथम हमारा रक्त दूषित होता है और शरीर के अंदर गर्मी रहने से शरीर रोगी होता है ।

मनुष्य शरीर में प्रवेश करने के दो ही मार्ग है पहला श्वसन मार्ग व्दारा दुसरे मुँह के माध्यम से हम शरीर में प्रवेश कर सकते है।  जिस प्रकार गलत आहार का सेवन करने से रोग होते है उसी प्रकार अशुध्द वायु का सेवन करने से शरीर रोगी होता है । इसलिये जितनी सावधानी हम सही भोजन का चुनाव करने में करते है उतनी ही सावधानी व सजगता शुध्द वायु को ग्रहण करने के लिये करना चाहिए ।

जितनी बार हम श्वास लेते है उतनी ही बार शरीर का रक्त बाहरी वायु के सम्पर्क में आता है । इसलिये यथा संभव हो सके शुध्द वायु का सेवन करना चाहिए । अपने निवास स्थान व शयन कक्ष में पर्याप्त वायु की आपूर्ति सुनिश्चित करना चाहिए ताकि शरीर को भरपूर आक्सीजन की आपूर्ति हो सके ।

प्राय: देखा गया है व्यक्ति मुहँ को ढंककर सोता है । सामान्य अवस्था में  व्यक्ति प्रति घंटें 8 गेलन कार्बोंनिक अम्ल प्रश्वास के माध्यम से शरीर के बाहर निकालता है । जब आप मुँह ढंककर सोते है, या बंद कमरे में सोते है  उतनी ही अधिक जहरीले गैस हमारे शरीर में जाती है और हम हमेंशा रोगी बने रहते है । प्राय: ठंड के मौसम में कई घरों में शयनकक्ष को पुरी तरह से बंद कर लिया जाता है । मान लिजिये एक कमरे में परिवार के चार सदस्य सो रहे है और कमरे में शुध्द वायु का आवागमन नही है तो एक व्यक्ति करीब 7 घंटें सोता है और परिवार के 4 सदस्य कुल 28 घंटें सोयेगें तो इस प्रकार 28×8 =224 गेलन कार्बोनिक अम्ल कमरे में एकत्र होगा तो सोचिये, परिवार के सदस्य कैसे स्वस्थ्य होगें ।

जब निरंतर गर्म व अशुध्द वायु नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश करती है तो शरीर का तापमान बढ जात है और शरीर रोगी हो जाता है । इसलिये हमारा प्रयास होना चाहिए कि शरीर को भरपूर शुध्द आक्सीजन के सेवन से हमेंशा शीतल व स्वस्थ्य रखने का प्रयास करे ।

शीतल वायु के सेवन से त्वचा के स्नायु संस्थान  में जान आती है और शरीर त्वचा के माध्यम से आनन्द का अनुभव करता है । जव शुध्द व शीतल वायु शरीर को स्पर्श करती है तो शरीर के समस्त यंत्र अपनी पूर्ण कार्यक्षमता से कार्य करते है और शरीर निरोगी होता है ।

वायु स्नान से हमारी भूख बढती है व पाचन शक्ति शक्तिशाली होती है । इसलिये यदि अपनी पाचन प्रणाली को शक्तिशाली बनाना है तो प्रातकाल: के शुध्द वातावरण में वायु सेवन करने अवश्य जाना चाहिए ताकि शरीर को शुध्द वायु की आपूर्ति हो सके । इसीलिये जब व्यक्ति प्रातकाल: टहलने के साथ-साथ बायु का सेवन करता है तो उसका स्नायु संस्थान शांत होता है और स्नायु संस्थान शांत होने से मन की क्रियाशीतलता बढ जाती है ।

इसीलिये देखा गया है कि जो नियमित रुप से सुबह टहलने जाते है तो उन्हे शुध्द आक्सीजन प्राप्त होती है जिससे उनकी थायराईड व एड्रीनल ग्रंथि स्वस्थ्य होती है और ऐसे व्यक्ति कभी बुढे नही होते है । इसलिये  जब भी सुबह घुमने जाये वहाँ शुध्द हवा की अधिकतम प्राप्ति हो सके इस उदेश्य से श्वास की प्राणिक क्रियाएँ की जा सकती है । साथ ही अपनी क्षमता के अनुसार हल्का दौडा जा सकता है जिससे फैफडें अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य करेगें और शरीर को भरपूर आक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी । इस प्रकार हम कह सकते है कि सो रोगों की दवा हवा(आक्सीजन) है । इसलिये आज ही से संकल्प ले की हम शुध्द वायु के भरपूर सेवन का अवसर नही खोयेगे और जब भी दूषित वातावरण में हमारी रहने की मजबूरी हो तो मुँह पर कपडा लगा कर रखेगें ताकि कम से कम हम अशुध्द वायु के सेवन से सुरक्षित रह सके ।

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